पुस्तक – समीक्षा
पुस्तक का नाम – पुराण-तत्त्व-प्रकाश
लेखक – चिमन लाल वैश्य
प्रकाशक – सत्य धर्म प्रकाशन, झज्जर-हरियाणा
मूल्य – 400=00 पृष्ठ संया – 527
लेखक का कथन है कि अठारह पुराण महर्षि व्यास द्वारा रचित नहीं है, स्वार्थी तत्त्वों ने आर्य जाति को गहरे गर्त में डूबो दिया है। वे महर्षि व्यास के नाम से अपना मनोरथ सिद्ध कर रहे हैं। उन्होंने भारतीयों को अनभिज्ञ बना दिया है। वेद का केवल नाम ही रहा। धर्म का स्वरूप गौण हो गया। सनातन धर्मी पुराणों को व्यासकृत मानते आ रहे हैं। इन पुराणों में महापुरुषों पर क्या-क्या आक्षेप किये गए हैं! जिन लोगों ने किए हैं, वे अपना उल्लू सिद्ध कर रहे हैं। लेखक इस भ्रम जाल को मिटाने के लिए योग्य पण्डितों की सहायता से सही वर्णन कर अंधविश्वास व गपोड़ों तथा अश्लील सामग्री को हटाना चाहता है, ताकि लोग वास्तविकता को जानें।
पुराणों के नाम भी विचित्र-विचित्र हैं। उनकी कथाएँ भी अविश्वसनीय है। जहाँ देवी-देवताओं की गरिमा होनी चाहिए, वहाँ उसे खाक में मिला दिया है। हमारी संस्कृति को भी पुराणकारों ने मटियामेट कर दिया है। आज पोंगा पंडितों की बहार है। हर कोई भागवत की कथा बाँच रहा है। महिलाएँ भी पीछे नहीं हैं। भगवत कथा में वे भी अग्रणी हैं। राधे-राधे करके तथा रास-लीला, कृष्ण सुदामा आदि की ऊपरी-ऊपरी बातों को बताकर भागवत के नाम मात्र से कल्याण एवं मोक्ष प्रदान कराते हैं। इससे सुगम मार्ग क्या हो सकता है?
लेखक एवं समपादक ने वेद के महत्त्व को प्रतिपादित किया है। अठारह पुराण व्यास जी द्वारा रचित नहीं हैं। लेखक ने तीन भागों में अलग-अलग परिच्छेदों के माध्यम से पुराणों पर प्रकाश डाला है। पुराणों की रचना, प्रचलन के कारण, सुनने का फल, महादेव, विष्णु, श्री कृष्ण, राम, ब्रह्म का निर्गुणत्व, मूर्तिपूजा का निषेध, शिवलिङ्ग पूजा, अलग-अलग स्नान, इन्द्रलीला, ब्रह्मलीला, अवतार, एकादशी महत्त्व, तीर्थ प्रकरण, तीर्थ यात्रा, अनेक कथाएँ, श्राद्ध, गया श्राद्ध आदि पर पूर्ण विवेचन एवं वास्तविकता को स्पष्ट किया गया है। शिवलिङ्ग के विषय में पुराणों में यह उल्लेख आता है-
कृष्ण चतुदर्शी को जो प्रजापति के लिङ्ग को स्नान कराता है और पूजन करता है, वह सब पापों से छूट जाता है।
ज्ञान व अज्ञान से मनुष्य जो पाप करता है, वह सन्ध्या को शङ्कर को घृत-स्नान कराने से नष्ट हो जाते हैं।
जो दूध से स्नान कराता है, उसको सात जन्म तक आरोग्य, सुन्दर रूप आदि मिलते हैं।
अग्नि पुराण में लिखा है कि मन्दिर का बनाने वाला सौ कुल का उद्धार करके विष्णु लोक को जाता है।
समपूर्ण यज्ञ, तप, दान तथा तीर्थ में स्नान करने और वेदों के पढ़ने से जो फल होता है, उससे करोड़ों गुणा फल शिवलिङ्ग की स्थापना से मिलता है।
लेखक व समपादक महोदय का साधुवाद है, जिन्होंने अठारह पुराणों की पोल खोलकर सत्य को सामने रखा है और वहाी निराकरण पूर्ण आधार पर, जिसका विरोध है ही नहीं। ठग अपनी दुकान चलाकर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। लोग सत्य को स्वीकार कर अन्धानुकरण को छोड़ें, इसी में उनका कल्याण है। वेद सर्वोपरि हैं। इस ग्रन्थ में पुराणों के अन्धकार को छोड़ वेद के प्रकाश को प्राप्त करने की बात प्रश्नोत्तर माध्यम से स्पष्ट की गई है। लेखक का साहस सराहनीय है।
देवमुनि, ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर।
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राजेश कुमार जी
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Jab Acharya Nand Kishore ji mauritius aaye the tab Pt Satyaprakash Beegoo ji ne pustak ki ek purani samskarana unhein diyaa thaa. Pandit ji ko pustak Shri Vishwadeo Beeharree ab Vanprasthi muni ji se mili thi jo unke apne pita ji ne sambhal kar rakhaa tha.Vanprasthi ji Mauritius ki pratham pidi ke arya neta the.