प्रभु के दरबार में सब प्रर्थनाएं स्वीकार होती हैं
डा. अशोक आर्य
प्रभु सर्वशक्तिशाली है तथा हम सब का पालक है । वह हमारी सब प्रार्थनाओं को स्वीकार करता है । यह सब जानकारी इस मन्त्र के स्वाध्याय से मिलती है , जो इस प्रकार है :-
वृषायूथेववंसगःकृष्टीरियर्त्योजसा।
ईशानोअप्रतिष्कुतः॥ ऋ01.7.8 ||
इस मन्त्र में चार बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है ।:-
१. प्रभु प्रजाओं को सुख देता है :-
परम पिता परमात्मा सर्व शक्तिशाली है । उसकी अपार शक्ति है । संसार की सब शक्तियों का स्रोत वह प्रभु ही है । इस से ही प्रमाणित होता है कि प्रभु अत्यधिक शक्तिशाली है । अपरीमित शक्ति से परिपूर्ण होने के कारण ही वह सब को शक्ति देने का कार्य करता है । जब स्वयं के पास शक्ति न हो , धन न हो , वह किसी अन्य को कैसे शक्ति देगा , कैसे दान देगा । किसी अन्य को कुछ देने से पहले दाता के पास वह सामग्री होना आवश्यक है , जो वह दान करना चाहता हो । इस कारण ही प्रभु सर्व शक्तिशाली हैं तथा अपने दान से सब पर सुखों की वर्षा करते हैं ।
२. प्रभु सब को सुपथ पर ले जाते हैं :-
परम पिता परमात्मा हम सब को सुपथ पर चलाते हैं , जिस प्रकार गाडी के कोचवान के इशारे मात्र से , संकेत मात्र से गाडी के घोडे चलते हैं ,गति पकडते हैं , उस प्रकार ही हम प्रभु के आज्ञा में रहते हुए , उस के संकेत पर ही सब कार्य करते हैं । हम, जब भी कोई कार्य करते हैं तो हमारे अन्दर बैठा हुआ वह पिता हमें संकेत देता है कि इस कार्य का प्रतिफ़ल क्या होगा ?, यह हमारे लिए करणीय है या नहीं । जब हम इस संकेत को समझ कर इसे करते हैं तो निश्चय ही हमारे कार्य फ़लीभूत होते हैं । वेद के इस संन्देश को ही बाइबल ने ग्रहण करते हुए इसे बाइबल का अंग बना लिया । बाइबल में भी यह संकेत किया गया है कि भेडों के झुण्ड को सुन्दर गति वाला गडरिया प्राप्त होता है, उनका संचालन करता है , उन्हें चलाता है । भेड के लिए तो यह प्रसिद्ध है कि यह एक चाल का अनुवर्तत्व करती हैं । एक के ही पीछे चलती हैं । यदि उस का गडरिया तीव्रगामी न होगा तो भेडों की चाल भी धीमी पड जावेगी तथा गडरिया तेज गति से चलने वाला होगा तो यह भेडें उस की गति के साथ मिलने का यत्न करते हुए अपनी गती को भी तेज कर लेंगी । बाइबल ने प्रजाओं को भेड तथा प्रभु को चरवाहा शब्द दिया है , जो वेद में प्रजाओं तथा प्रभु का ही सूचक है ।
३. प्रभु से औज मिलता है : –
परम, पिता परमात्मा ओज अर्थात शक्ति देने वाले हैं । जो लोग कृषि अथवा उत्पादन के कार्यों में लगे होते हैं , उन्हें शक्ति की , उन्हें ओज की आवश्यकता होती है । यदि उनकी शक्ति का केवल ह्रास होता रहे तो भविष्य में वह बेकार हो जाते हैं , ओर काम नहीं कर सकते । शिथिल होने पर जब प्रजाएं कर्म – हीन हो जाती हैं तो उत्पादन में बाधा आती है । जब कुछ पैदा ही नहीं होगा तो हम अपना भरण – पोषण कैसे करेंगे ? इस लिए वह पिता उन लोगों की शक्ति की रक्षा करते हुए , उन्हें पहले से भी अधिक शक्तिशाली तथा ओज से भर देते हैं ताकि वह निरन्तर कार्य करता रहे । इस लिए ही मन्त्र कह रहा है कि जब हम प्रभु का सान्निध्य पा लेते हैं , प्रभु का आशीर्वाद पा लेते हैं , प्रभु की निकटता पा लेते हैं तो हम ( जीव ) ओजस्वी बन जाते है ।
४. प्रभु सबकी प्रार्थना स्वीकार करते हैं :
परमपिता परमात्मा को मन्त्र में इशान कहा गया है । इशान होने के कारण वह प्रभु सब प्रकार के ऐश्वर्यों के अधिष्ठाता हैं , मालिक हैं , संचालक हैं । प्रभु कभी प्रतिशब्द नहीं करते , इन्कार नहीं करते , अपने भक्त से कभी मुंह नहीं फ़ेरते । न करना , इन्कार करना तो मानो उन के बस में ही नहीं है । उन का कार्य देना ही है । इस कारण वह सबसे बडे दाता हैं । वह सब से बडे दाता इस कारण ही हैं क्योंकि जो भी उन की शरण में आता है , कुछ मांगता है तो वह द्वार पर आए अपने शरणागत को कभी भी इन्कार नहीं करते ,निराश नहीं करते । खाली हाथ द्वार से नहीं लौटाते । इस कारण हम कभी सोच भी नहीं सकते कि उस पिता के दरबार में जा कर हम कभी खाली हाथ लौट आवेंगे , हमारी प्रार्थना स्वीकार नहीं होगी । निश्चित रुप से प्रभु के द्वार से हम झोली भर कर ही लौटेंगे ।
डा. अशोक आर्य
OUM….
ARYAVAR, NAMASTE.
AAP KI HAREK LEKH BAHUT JYAANVARDHAK HITEHAI ADHYAYAN KARTE SAMAYA SABKUCHH BHOLKE KEVAL LEKH ME HI DHYAAN LAGTAA HAI….
IS LEKH ME MERI THODISI SAMSHAYA HAI KI
“प्रभु के दरबार में सब प्रर्थनाएं स्वीकार होती हैं”
KYAA प्रभु KI KOI ‘दरबार’ HAI KYAA?
FIR BHINNA MAT PANTH WAALE KAHENGE KI ARYA SAMAJ KE LOG BHI EESHWR KO दरबार ME RAHANE WAALAA SWIKAAR KARTE HAIN…
TAKHT PE BAITHNE WAAALAA ‘ALLAH’, SANAI PARVAT ME RAHANE WAALAA ‘YEHVA’ AUR दरबार ME RAHNE WAALAA PRABHU EK JAISAA NAHIN HUWAA?
KOI KAARAN AVASHYA HOGAA JO AAP NE YEH SHABD ‘दरबार’ PRAYOG KIYAA..
KRIPAYAA SAMSHAYA DUR KIJIYE….
DHANYAVAAD…
NAMASTE..
यहाँ आशय ईश्वर के सामिप्य से है