प्रभु भक्त ज्ञान व दीप्ति बांट उषा वेला में उठता है़
डा. अशोक आर्य
जो प्राणी प्रभु भक्त होता है , वह अज्ञानियों में सदा ज्ञान बांटता है , जो प्रसाद व दीप्ति से रहित होते हैं , उन्हें यह दीप्ति पाने में सहायक होता है तथा एसा प्राणी सदा उष:काल में उठ जाता है । इस बात को यह मन्त्र इस प्रकार समझा रहा है : –
केतुंकृण्वन्नकेतवेपेशोमर्याअपेशसे।
समुषद्भिरजायथाः॥ ऋ01.6.3
केतुं क्रण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे ।
समुषद्भिर्जायथा: ॥ रिग्वेद १.६.३ ॥
इस मन्त्र में मुख्य रुप से तीन बातों पर प्रकाश डाला गया है , जो इस प्रकार है :-
१. ज्ञान का प्रसार ही जीवन का ध्येय
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को अपने शरीर रुपि रथ में जोडता है अर्थात जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को कभी स्वाधीनता से विचरण नहीं करने देता बल्कि इस प्रकार अपने काबू में रखता है ,जिस प्रकार एक उत्तम सारथि अपने घोडों को अपने काबू में रखता है । इस प्रकार इन्द्रियों को बस में रखते हुए वह प्रभु भक्त प्रभु के चिन्तन भजन में लगा रहता है , प्रभु के स्मरण व कीर्तन में लगा रहता है । प्रभु को साक्षात करने का यत्न करता है , प्रभु दर्शन का प्रयास करता है । एसा व्यक्ति उन लोगों के लिए ज्ञान का प्रकाश करने वाला बनता है , जो ज्ञान से रहित होते हैं । भाव यह कि जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से ज्ञान नहीं पा सकते , यह व्यक्ति उन्हें उत्तम ज्ञान देकर अपने समकक्ष बनाने का यत्न करता है । इस प्रकार यह ज्ञान का प्रसार ही वह अपने जीवन का उद्देश्य , अपने जीवन का ध्येय बना लेता है ।
२. लडाई झगडों को कम कर दीप्ति बढाना
यह प्रभु भक्त अपने साथ ही साथ अन्यों को भी दीप्त करने वाला होता है । हे मानव ! यह प्रभु भक्त सब को आत्मवत ही , अपने समान ही समझते हुए अपने जैसा ही बनाने का यत्न करता है । जो सफ़लताएं , जो प्राप्तियां इसने पाली होतीहै, उन्हें दूसरों को भी प्राप्त कराने का यत्न यह करता है । जो दीप्ति रहित होते हैं उन्हें दीप्त करने का यत्न करता है । एसे लोगों को वह स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान देता है ताकि उस ज्ञान पर चलते हुए वह भी उत्तम स्वास्थ्य पा कर स्वास्थ्य में दीप्त हो सकें । इतना ही नहीं वह उनमें एक दूसरे के साथ व्यवहार कैसा किया जाना चाहिये , इस को भी समझाता है । परस्पर के व्यवहार की विभिन्न विधियों का उन्हें शिक्षण देता है , उन्हें बताता है । एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करते हुए रहने का उपदेश देता है । इस प्रकार परस्पर प्रेम में वृद्धि करता है प्रेम की इस वृद्धि से तथा आपसी झगडों में कमी करवा कर, उनके लडाई झगडों को कम करवा कर उन में दीप्ति को बढाने का कारण बनता है ।
३. उष:काल में उठना
मन्त्र में जिस तीसरी बात पर प्रकाश डाला गया है वह है – एसा व्यक्ति सदा ही उष:काल में . ब्रह्म मुहूर्त मे , सूर्य की प्रथम किरण निकलने के साथ ही उठ खडा होता है , शैय्या को त्याग देता है । इस समय कभी भी सोया हुआ दिखाई नहीं देता । वह यह जानता है कि जो प्रात:काल जल्दी उठता है , प्रभु उस पर सदा आशीर्वादों की वर्षा करता है तथा जो सोया रह जाता है , एसे व्यक्ति के तेज को उदय हो रहा सूर्य हर लेता है । यह तेज हीन , तेज रहित हो जाते हैं । इसलिए प्रात:काल उष:काल में निश्चित ही वह उठ खड़ा होता है |
डा. अशोक आर्य
Oum..
Aryavar, Namaste…
Arya Samaaj ki Bhajan aur hinduon ki Bhajan me Kyaa Antar hai ? Bhajan kaa khaas mane kyaa hai? bataane ki kripaa Karen…
dhanyavaad…
Namaste..
वैदिक सिद्धांतों के अनुरप गायन वैदिक और विपरीत अवैदिक है