परोपकारी क्या है?

परोपकारी क्या है?

(आचार्य श्री पं. पद्मसिंह जी शर्मा के सपादकत्व में ‘परोपकारी’ मासिक का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ था। उसमें प्रकाशित महाकवि नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ की यह कविता प्रस्तुत है-)

– सतीश शुक्ल

–   निश्शंक सत्यवादी सेवक महेश का है,

प्रखयात पक्षपाती ब्रह्मोपदेश का है।

संसार का सँगाती साथी स्वदेश का है,

प्यारा प्रतापशाली प्यारे प्रजेश का है।

आदर्श है दया का आनन्द-वन-बिहारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।1।।

 

–   विज्ञान बुद्धबाधक अज्ञान-मार का है,

देखो असीम सागर गहरे विचार का है।

अवतार तर्कमूलक सद्धर्म सार का है,

सीधा विशुद्ध साधन सबके सुधार का है।

वैदिक समाज का है सन्मित्र धीर-धारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।2।।

 

–   बाहुल्य सद्गुणों का दुर्भिक्ष दोष का है,

अधिकार है कृपा का प्रतिकार रोष का है।

मुख मंजु घोष का है यश आशुतोष का है,

प्रियपद्मराग-रूपी रस पद्म-कोष का है।

लो साधु-चंचरी को यह भेंट है तुहारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।3।।

 

–   जो शक्ति-शर्वरी से मन को मिला रहा है,

चिन्ता-चकोरनी के कुल को जिला रहा है।

कविता-कुमुदिनी की कलियाँ खिला रहा है,

पीयूष नवरसों का हमको पिला रहा है,

वह चन्द्रमा यही है, साहित्य-व्योमचारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।4।।

 

–   शृंगार का विषैला शोणित निचोड़ देगी,

कौटिल्य बाँकपन के उर पेट फोड़ देगी।

कामादि के कंटीले सब जोड़ तोड़ देगी,

आलस्य को अछूता जीता न छोड़ देगी।

पाखण्डखण्डिनी है, इसकी कला-करारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।5।।

 

–   प्राचीन पुस्तकों से भण्डार भर चुका है,

अनुभूत आगमों का ध्रुव ध्यान धर चुका है।

भाषा सुधारने का संकल्प कर चुका है,

कुत्सित कथानकों के परिकर कतर चुका है।

इसने महज्जनों की महिमा मुँदी उधारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।6।।

 

–   जिसके लिए अयोगी अटकल लगा रहे हैं,

जिसके लिए प्रमादी धन को ठगा रहे हैं।

भ्रम-भ्रान्ति से सुलाकर जिसको जगा रहे हैं,

अवतार दूत जिसकेाय को भगा रहे हैं।

उस देव की दिखादि इसने विभूति सारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।7।।

 

–   जो मूढ़-मण्डली के आगे अड़े हुए हैं,

जो ठोकरें ठगों की खाते खड़े हुए हैं।

जो जन्म-कुण्डली में डूबे पड़े हुए हैं,

जो कुल कुलक्षणों में लक्षण झड़े हुए हैं।

उनकी अटक उलूकी इसने मसोस मारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।8।।

 

–   जो लोग झंझटों के झण्डे उड़ा रहे हैं,

झगड़े बढ़ा-बढ़ा कर छक्के छुड़ा रहे हैं।

बिन बात जूझने को रस्से तुड़ा रहे हैं,

हा, एकता-तरी को जिसमें बुड़ा रहे हैं।

वह नाश-नद न इसको दे वैर-वारि-खारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।9।।

–   जो सर्वनाश-नद में जीवन डुबो चुका है,

दुर्दैव का सताया, दिन-रात रो चुका है।

कगांल मन्दभागी कुल को भिगो चुका है,

खोकर स्वतन्त्रता को परतन्त्र हो चुका है।

उस देश की भलाई इसने नहीं बिसारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।10।।

 

–   निर्दोष वेद-विद्या सबको सिखा रहा है,

विद्वान्-दीपकों में बनकर शिखा रहा है।

जिसके सुलेखकों से लक्षण लिखा रहा है,

उस देवनागरी के रूपक दिखा रहा है।

इसके महाशयों की टकसाल है करारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।11।।

 

–   ऊँचा चढ़ा रहा है गुण-गेह ज्ञानियों को,

नीचा गिरा रहा है मिथ्याभिमानियों को।

आदर दिला रहा है निष्काम दानियों को,

झूठी बता रहा है, कोरी कहानियों को।

इसका विवेक-बल है पूरा प्रमाद-हारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।12।।

 

–   अविकल्प योग-बल को जिनमें प्रधानता है,

उन सिद्ध योगियों को निर्बन्ध जानता है।

विद्या-विशारदों के सद्गुण बखानता है,

व्रतशील सज्जनों को सन्मित्र मानता है।

इसको नहीं सुहाते ठग, आलसी, अनारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।13।।

 

–   जिसकी दयालुता ने आनन्द-फल दिया है,

जिसकी प्रवीणता ने विज्ञानपथ दिया है।

जिसकी महानता ने भरपूर यश लिया है,

जिसकी उदारता ने सबका भला किया है।

है इष्टदेव इसका, वह बाल ब्रह्मचारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।14।।

 

–   विधवा बड़े घरों की महिमा घटा रही है,

गायें गले कटातीं चर्बी चटा रही हैं।

बातें विदेशियों की सौदा पटा रही हैं,

देशी सुधारकों से हमको हटा रही हैं।

ऐसी कड़ी कुचालें इसको लगें न प्यारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।15।।

 

–   रस भंग तुक्कड़ों के आसन उखाड़ देगा,

कविता कलंङ्किनी को लबी लताड़ देगा।

उदण्ड गायकों के मुखड़े बिगाड़ देगा,

करताल तोड़ देगा फिर ढोल फाड़ देगा।

कविराज की करेगा गुणगान से सुखारी,

शंकर सरस्वती का वर है परोपकारी।।16।।

 

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