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परिवार को स्वर्गिक आनंद देने के उपाय
डा. अशोक आर्य
जहाँ पर सब व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए एक दूसरे से प्रेम पूर्वक आनंद से रहते हैं , वहां स्वर्ग का वास होता है | लडाई – झगड़ा, कलह – क्लेश आदि की विद्यमानता में सदैव कष्ट ही कष्ट होता है , रोगों का सर्वत्र निवास होता है | इस लिए वेद आदेश देता है कि हे मानव ! सुखी जीवन पाने के लिए तुम सब मिलकर रहो | प्रतिदिन के नित्य कर्मों को नियम से करो, प्रभु स्मरण करो तथा प्रात: – सायं यग्य करो | इस प्रकार के कर्म करने से तुम्हें उत्तम स्वास्थ्य , यश व कीर्ति मिलेगी | इस पर अथर्ववेद इस प्रकार प्रकाश डाल रहा है : –
इमे गृहा मयोभुव उर्जस्वंत: पयास्व्न्त: |
पुरना वामें तिष्ठन्त:, ते नो जानान्त्वायत: || अथर्व. ७.६०.२ ||
इस घर में सब सुख हैं, अन्न व दूधादी से संपन्न है | यह सब अभीष्ट पदार्थों से भरपूर होते हुए प्रवास आदि से लौटते हुए हमें मिले |
यह मन्त्र एक आदर्श परिवार की अत्यंत ही सुन्दर रूप रेखा का दिग्दर्शन प्रस्तुत करते हुए कहता है कि एक आदर्श परिवार में इन गुणों का होना आवश्यक होता है :-
(१) परिवार में सुख हो : –
परिवार किस प्रकार सुखी रह सकता है ? परिवार किस प्रकार संपन्न रह सकता है ? परिवार में किस प्रकार समृद्धि आ सकती है ? परिवार में किस प्रकार उत्कृष्टता आ सकती है ? , इस सब पर विचार करते हुए मन्त्र कहता है कि यदि हम परिवार में ये सब कुछ पाना चाहते है तो सर्व प्रथम यह आवश्यक है कि एसे परिवार का निवास एसे स्थान पर हो, जहाँ धूप व खुली वायु सरलता से प्रवेश कर सके | एसे परिवार के निवास स्थान के भवन की शिल्प इस प्रकार से की जावे कि भवन में बनाए गए कमरे न तो बहुत छोटे ही हों कि उन कमरों में रहना दूभर लगे तथा अधिक छोटे कमरों में धूप अथवा सूर्य का प्रकाश प्रवेश ही न कर पावे , वायु को भी घुमने में , चलने में परेशानी न हो तथा न ही कमरे इतने अधिक बड़े हों कि पूरा कमरा खाली सा ही पड़ा दिखाई दे | बाहर सूर्य की प्रथम किरण निकलते ही कमरे के अन्दर इतनी धूप आ जावे कि बैठना ही दूभर हो जावे | वायु का एक हलका सा झोंका कमरे के अन्दर के सब सामान को इधर उधर बिखेर दे | सर्दी के समय तो एसे कमरों में निवास ही कठिन हो जाता है | इसलिए कमरों का क्षेत्र सीमित व मर्यादित होगा तो परिवार प्राकृतिक सुविधाओ को ठीक स्वरूप में पा सकेगा | अत: यह मन्त्र मर्यादित भवन निर्माण करने का यह मन्त्र आदेश दे रहा है |
इतना ही नहीं मन्त्र परिवार के निवास स्थान की रूपरेखा बताते हुए आगे प्रकाश इस प्रकार डालता है कि इस भवन कि ऊँचाई भी मर्यादित हो | यह इतना उंचा हो कि इस में गर्मी के समय खुली वायु मिल सके किन्तु इतना अधिक उंचा भी न हो कि इसमें अत्यधिक वायु आने से ठंडी के दिनों में सिकुडन का अनुभव हो तथा इस के रख रखाव , साफ़ सफाई में भी परेशानी आवे | इस प्रकार भवन की ऊँचाई को भी मर्यादित रखने का आदेश यह मन्त्र देता है | मन्त्र आगे उपदेश करता है कि इस भवन के दरवाजे व खिड़कियाँ भी इस प्रकार से बनायी जावें कि जिन के कारण उस कमरे में निवास करने पर आनंद का अनुभव हो | सुख का अनुभव हो | परिवार को खुली वायु मिले | परिवार को समुचित प्रकाश दे सकें | इस कमरे में निवास करने वाले व्यक्ति को सुन्दर सुगंध देवें | इस प्रकार की खिड़कियाँ इस में निवास करने वाले व्यक्ति को सदा आनंदित रखती हैं , सदा हर्षित रखती हैं | इस में निवास करने वाले व्यक्ति को सदा सुरुचि पूर्ण लगती हैं | एसे कमरे से उसे बाहर जाने को मन ही नहीं मानता | किन्तु यदि खिडकियों का मुख किसी बाग – बगीचे के स्थान पर गंदगी के केंद्र पर होगा तो इस कमरे में निवास करना दूभर हो जावेगा | इस कमरे में पूरा दिन दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध मिलेगी | इस कमरे के निवासियों पर रोग आक्रमण करने लगेंगे | इस कमरे के निवासी की आयु भी कम हो जावेगी | इस लिए मन्त्र का स्पष्ट आदेश है कि कमरे की खिड़कियाँ सुरुचिपूर्ण हों |
मन्त्र आगे बताता है कि भवन निर्माण इस प्रकार किया जावे कि स्थान कम होने पर भी यह भवन अधिक सुख सुविधायें देने में सक्षम हो सके | आज तो देश दुनिया में स्थान के आभाव में छोटे व बहु मंजिला भवन बन रहे हैं | इन अत्यंत छोटे भवनों में भी निर्माण कला एसी हो रही है कि इन में हम अत्यधिक सामान रख सकते हैं | मन्त्र भी यही प्रेरणा दे रहा है | मन्त्र कह रहा है कि इस की भवन निर्माण में इन बातों का ध्यान रखा जावे की इस में समुचित सामान रखा जा सके | जहाँ पर परिवार का सामान ही न आवे , उस भवन का क्या लाभ तथा जहाँ पूरे के पूरे कमरे ही खाली पड़े रहे , सफाई के लिए भी अत्यधिक समय नष्ट करना पड़े, एसे भवन का भी क्या लाभ | अत: भवन मर्यादित आकार में बनाया जावे, जिस में सामान रखने में कठिनाई न हो तथा न ही अत्यधिक क्षेत्र बेकार ही रहे | इस भवन में शयन कक्ष , स्वाध्याय कक्ष , पठन कक्ष ,भोजन कक्ष आदि विभिन्न कक्षों की भी अलग अलग व्यवस्था मिले तो परिवार में कोई परेशानी न होगी | यदि सोने का कमरा तथा पढने का कमरा एक होगा तो इस कमरे में पढ़ने वाले को उस समय परेशानी आवेगी, जब कोई अन्य इस में सो रहा हो तथा सोने वाले को परेशानी होगी , जब कोई अन्य प्रकाश करते हुए पढ़ रहा हो | अत: विभिनं कार्यों के लिए कमरे भी विभिन्न ही होने चाहियें |
(२) परिवार में सब प्रकार की सुख सुविधायें उपलब्ध हों : –
परिवार सब सुख सुविधाओं से संपन्न हो , यह इस बात पर प्रकाश डाल रहा है कि इस भवन में निवास करने वाले लोगों के पास अन्न, वस्त्र आदि सब प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हों | इस में निवास करने वाले लोगों के पास अच्छा व स्वास्थ्य वर्धक अन्न हो तथा इस को सुरक्षित रखने की समुचित व्यवस्था भी इस भवन के निर्माण के समय की गयी हो | यदि भवन बनाते समय यह ध्यान ही नहीं दिया गया कि परिवार की आवश्यक वस्तुएं यथा अन्नादि भी इस भवन में आना है तो भवन बनाने के पश्चात इस परिवार के भरण पोषण के लिए अन्न आदि कहाँ रखेंगे ? यदि इसे खुले में रखा गया तो यह खाराब हो जावेगा तथा यदि इसे किसी बंद स्थान पर रखा गया तो भी यह ख़राब हो जावगा | ख़राब अन्न का प्रयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से हानि कर होता है | अत: इस के प्रयोग से परिवार रोग व कष्ट से भर जावेगा अत:एसे भवन में परजनों का जीना ही दूभर हो जावेगा | अन्न ही शरीर को शक्ति देता है | अन्न ही शरीर की ऊर्जा का कारण होता है | यदि घर में अन्न ही सुरक्षित न होगा तो परिजनों का स्वास्थ्य ठीक न रहेगा तथा न ही शरीर में संतुलित ऊर्जा का ही प्रवाह होगा |
मन्त्र इस बात परा भी प्रकाश डालता है कि परिवार में दूध , घी , जलादि का ठीक से प्रबंध हो , व्यवस्था हो | इससे भाव है कि इस भवन में दुधारू पशु रखने की अलग से समुचित व्यवस्था की गयी हो ताकि इस परिवार में सुरक्षित व स्वस्थ पशु धन रखा जा सके,जो परिवार की सम्पन्नता को प्रकट करे तथा परिजनों को दूध व घी देकर उन्हें पुष्ट करे व स्वस्थ रख सके | इस परिवार में जल का भण्डारण करने की भी क्षमता होनी आवश्यक है | यदि भवन निर्माण के समय जल भंडारण व संरक्षण का ध्यान नहीं रखा जाता तो भवन बेकार हो जाता है | जल ही जीवन होता है | जल के बिना मानव एक पल भी जीवित नहीं रह सकता | जल हो किन्तु दूषित हो तो इस का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव निश्चित है | इस लिए भवन निर्माण के समय जल भंडारण का समुचित ध्यान रखना आवश्यक है तथा जल इस प्रकार से रखने की व्यवस्था हो , जहाँ से जल सरलता से उपलब्ध हो किन्तु नष्ट न हो |
3 इस प्रकार यह मन्त्र हमें उपदेश देता है , आदेश देता है कि यदि हम सुखों की चाहना रखते हैं ,सुखों की इच्छा रखते है, स्वस्थ रहना चाहते हैं , रोग शोक से बचना चाहते हैं , परिवार में कलह क्लेश न हो तो हमें अपने घर के निर्माण के समय अनेक बातों का ध्यान रखना होगा, जिससे हमें शुद्ध वायु व सुचारू प्रकाश मिल सके | हमें सब परिजनों को अलग अलग कार्यों के लिए अलग से किन्तु हवादार कमरे उपलब्ध हों | हमारी रसोई अलग हो, भोजन कक्ष अलग हो तथा खिड़कियाँ भी एसे स्थान पर हों जो मनोहारी दृश्य दिखावें | घर में अन्न आदि का भंडारण व पशु आदि का स्थान भी हो तथा जलादि का भण्डारण भी ठीक से किया जा सके | यदि हमारे घर इस योजना से बनेंगे तो हमारा स्वास्थ्य उतम होगा, हम खुश रहेंगे तथा हमारी आयु भी दीर्घ होगी |
डा. अशोक आर्य
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