पं. नरेन्द्र जी (हैदराबाद)

पं. नरेन्द्र जी (हैदराबाद)

– रामनिवास गुणग्राहक

नर-नाहर नरेन्द्र का जीवन आर्यो, भूल न जाना।

प्राण-वीर अनुपम बलिदानी, वैदिक धर्म दिवाना।।

जब निजाम की दानवता ने मानवता को कुचला।

सबसे पहले आगे आया, वह साहस का पुतला।।

वाणी और लेखनी उसकी अंगारे बरसाती।

दूल्हा बना नरेन्द्र, साथ थे आर्य वीर बाराती।।

शुरू कर दिया उसने पाप-वृक्ष की जड़ें हिलाना-प्राणवीर…..

पहले फूँका शंख युद्ध का, पहले जेल गया था।

प्राणों का निर्मोही, प्राणों पर ही खेल गया था।।

जीवन के छह बरस जेल में अत्याचार सहे थे।

काला पानी तक भोगा, पर प्रण पर अटल रहे थे।।

लेखराम-श्रद्धानन्द से सीखा था धर्म निभाना- प्राणवीर…..

था ‘वैदिक आदर्श’ आपका पाञ्चजन्य उस रण का।

उसमें तव आदर्श गूँजता जीवन और मरण का।।

‘मसावात’ और ‘झण्डा’ में हुंकार तेरी सुनते थे।

आर्यवीर उत्साह उमंगों के सपने बुनते थे।।

अनुपम काम तेरा आर्यों में धर्म-आग सुलगाना-प्राणवीर……

दलितोद्धार हेतु तू पहले-पहल जेल में धाया।

शासक और सजातीयों ने जी भर तुझे सताया।।

तेरे गर्जन-तर्जन में कोई अन्तर नहीं आया।

शायद तुझको कौशल्या कुन्ती ने दूध पिलाया।।

सब ‘गुणग्राहक’ आर्य सदा गायेंगे सुयश तराना- प्राणवीर…..

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