मुहम्मद साहब बे पढ़े लिखे थे
कुरान की भाषा बताती है कि मुहम्मद साहब उम्मी अर्थात् बे पढ़े लिखे नहीं थे क्योंकि उन्होंने कहा मैं है ‘‘मैं खुदा की आयतें तुम्हे पढ़कर सुनाता हूँ’’ (कुरान पारा ११ सूरे हूद आयत २) जबकि बे पढ़ा आदमी अरबी नहीं पढ़ सकता था अथवा घोषणा करें कि कुरान की यह आयत गलत है।
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
व मा कुन्त तत्लू मिन् कब्लिही……….।।
(कुरान मजीद पारा २० सूरा अंकबूत रूकू ५ आयत ४८)
और कुरान से पहले न तो तुम कोई किताब ही पढ़ते थे और न तुमकों अपने हाथ से लिखना ही आता था।
समीक्षा
यह ऊपर की बात स्वयं कुरान से ही गलत साबित हो जाती है। कुरान की पहले पारे की पहली सूरत की पहली आयत-
बिस्मिल्लार्रह्मानिर्रहीम……………।।
(कुरान मजीद पारा १ सूरा बकर रूकू १ आयत १)
शुरू करता हूं साथ नाम अल्लाह के जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है। इससे मुहम्मद साहब खुदा का नाम लेकर कुरान लिखना शुरू करते हैं। यह वाक्य बताता है कि वे पढ़े लिखें जरूर थे।
अल्ला तअ्-बुदू इल्लल्ला-ह इन्ननी………..।।
(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ५ आयत २)
खुदा के सिवाय किसी की पूजा मत करो, मैं उसी की ओर से तुमको डराता और खुश खबरी सुनाता हूँ।
समीक्षा
इसमें खुदा की बहुत खुशखबरी सुनाने और डराने की बात मुहम्मद साहब ने की है।
तिल्-क आयातुल्लाहि नत्लू हा…………..।।
(कुरान मजीद पारा ३ सूरा बकर ३३ आयत २५२)
यह अल्लाह की आयतें हैं जो मैं तुमको पढ़-पढ़ कर सुनाता हूँ।
कुल् लो शा-अल्लाहु मा-तलौतुहू………..।।
(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनिस रूकू २ आयत १६)
कहो अगर खुदा ये चाहता है तो मैं न तुमको पढ़ कर सुनाता और न खुदा तुमकों इससे अगाह कराता।
व कालतिल्-यहूदु अुजैरूनिब्नु…………।।
(कुरान मजीद पारा १० सूरा तौबा रूकू ५ आयत ३०)
खुदा इनको गारत करे ये किधर को भटके चले जा रहे हैं?
समीक्षा
खुदा से गारत करने की प्रार्थना मुहम्मद साहब ने की थी। इन प्रमाणों से साफ जाहिर है कि कुरान को लिखने वाले मुहम्म्द साहब थे, वे पढ़े-लिखे भी थे, और कुरान का पढ़-पढ़ कर लोगों को सुनाया भी करते थे। यह उन्होंने खुद स्वीकार किया है। अतः कुरान का उक्त दावा भी गलत है।
परम् सत्य।
सत्य