मुहम्मद द्वारा रात को जन्नत का सफर
”किताब अल-ईमान“ में अनेक अन्य विषयों पर भी विचार किया गया है, जैसे कि मुहम्मद द्वारा रात में यरूशलम जाना और कयामत के पहले दज्जाल तथा यीशु का आना। इस्लामी मीमांसा में इनका पर्याप्त महत्व है।
एक रात, अल-बराक (एक लम्बा सफेद जानवर, जो गधे से बड़ा पर खच्चर से छोटा था) पर चढ़कर मुहम्मद यरूशलम के मंदिर में पहुंचे। और वहां से विविध लोकों में या स्वर्ग के विविध ”वृत्तों“ में (जैसा कि दांते ने उन्हें कहा है) घूमते रहे-रास्ते में विभिन्न पैगम्बरों से मिलते हुए। पहले आसमान में उन्हें आदम मिले। दूसरे में यीशु। छठे में मूसा और सातवें में इब्राहिम। फिर वे अल्लाह से मिले, जिन्होंने मुसलमानों के लिए हर रोज पचास नमाजों का आदेश दिया। पर मूसा की सलाह पर मुहम्मद ने अल्लाह से अपील की और तब नमाजों की संख्या घटाकर पांच कर दी गई। ”पांच और फिर भी पचास“-एक प्रार्थना दस के बराबर मानी जासगी, क्योंकि ”जो कहा जा चुका है, वह बदलेगा नहीं“ (313)। इसलिए असर में अन्तर नहीं आएगा और पांच ही पचास का काम करेंगी।
रहस्यवादी भावना वाले लोग इस यात्रा को आध्यात्मिक यात्रा के रूप में समझते हैं। किन्तु मुहम्मद के साथी, और बाद के अधिकांश मुस्लिम विद्वान, यही विश्वास करते हैं कि यह यात्रा या आरोहण (मिराज) दैहिक था। मुहम्मद के समकालीन अनेक लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई और इस यात्रा को एक सपना बतलाया। पर हमारे अनुवादक का तर्क है कि यात्रा पर यकीन नहीं किया गया, इसीलिए वह एक सपना नहीं थी। क्योंकि ”अगर वह सपना होता, तो उस पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं होती। इस तरह के सपने तो किसी भी काल के किसी भी व्यक्ति की कल्पना में कौंध सकते हैं“ (टि0 325)।
author : ram swarup