मेरे पिता
-सविता गुप्ता
पिताजी के जीवन से बहुत-सी बातें मुझे सीखने को मिलीं-
- बीमारी कैसी भी रही हो, पिताजी ने कभी अपनी बीमारियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। जब भी किसी ने उन्हें पूछा कि आप कैसे हैं, उन्होंने हमेशा हँसकर उत्तर दिया है कि बहुत अच्छा हूँ।
- मैंने उन्हें जीवन में किसी भी व्यक्ति के लिए कुछ बुरा कहते हुए नहीं सुना। जीवन में उन्हें किसी से कोई भी शिकायत नहीं रही है।
- विपरीत परिस्थितियों में भी उनका हौसला बना रहता है। उन्हें कान से सुनना करीब-करीब बंद हो गया। आँखों से देखना भी बहुत कम हो गया। उन्हें खबरें सुनने का बड़ा शौक है। उन्होंने अपना रास्ता निकाल लिया। एक छोटे-से रेडियो को कान के पास लगाकर वो सारी खबरें रोज सुनते हैं। न पढ़ पाने की मजबूरी को भी उन्होंने परिवार-जनों से किताब पढ़वा कर दूर किया । न लिख पाने की मुश्किल का समाधान उन्होंने बोलकर अपनी बातें लिखवा कर किया।
- भजनों का पिता जी को शौक है, लेकिन अब देख कर गाना उनके लिए संभव नहीं है। एक दिन बोले- सविता तू मुझे कुछ भजन कंठस्थ करवा दे, ताकि जब भी मेरा मन करे, मैं उन्हें गा सकूँ।
ईश्वर में ऐसी दृढ़ आस्था के कारण आज भी पिताजी हर शारीरिक दुर्बलता के उपरांत बहुत मजबूत हैं। ईश्वर उनका हाथ हम सब के सर पर हमेशा बनाये रखे।
– मुबई
Hamare Buzurg Hamara Maan!
Jab vo nahi hote hain to subkuch khali hota hai!
Respect them always.