‘मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम को जानकर उनके अनुसार अपना जीवन बनाने का संकल्प लेने का पर्व है रामनवमी’

ओ३म्

रामनवमी के अवसर पर

मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम को जानकर उनके अनुसार अपना

जीवन बनाने का संकल्प लेने का पर्व है रामनवमी

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

सृष्टि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म होना आर्यों व हिन्दुओं के लिए अति गौरव की बात है। यदि यह  दो महापुरुष न हुए होते तो कह नहीं सकते कि मध्यकाल में वैदिक धर्म व संस्कृति का जो पतन हुआ और महर्षि दयानन्द के काल तक आते-आते वह जैसा व जितना बचा रहा, बाल्मीकि रामायण की अनुपस्थिति में वह बच पाता, इसमें सन्देह है? यह भी कह सकते है कि यदि वैदिक धर्म व संस्कृति किसी प्रकार से बची भी रहती तो उसकी जो अवस्था महर्षि दयानन्द के काल में रही व वर्तमान में है, उससे कहीं अधिक दुर्दशा को प्राप्त होती। अतः मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम व महर्षि वाल्मीकि व उनके ग्रन्थ रामायण को हम महाभारत काल के बाद सनातन वैदिक धर्म के रक्षक के रूप में मान सकते हैं।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम में ऐसा क्या था जिस पर महर्षि वाल्मीकि जी ने उनका इतना विस्तृत महाकाव्य लिख दिया जिसका आज की आधुनिक दुनियां में सम्मान है? इसका एक ही उत्तर है कि श्री रामचन्द्र जी एक मनुष्य होते भी गुण, कर्म व स्वभाव से सर्वतो-महान थे। उनके समान मनुष्य उनके पूर्व इतिहास में हुआ या नहीं कहा नहीं जा सकता क्योंकि वाल्मीकि रामायण के समान उससे पूर्व का इतिहास विषयक कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है और अनुमान है कि बाल्मीकि जी के समय में भी उपलब्ध नहीं था। श्री रामचन्द्र जी त्रेतायुग में हुए थे। त्रेता युग वर्तमान के कलियुग से पूर्व द्वापर युग से भी पूर्व का युग है। कलियुग 4.32 लाख वर्ष का होता है जिसके वर्तमान में 5,116 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इससे पूर्व 8.64 हजार वर्षों का द्वापर युग व्यतीत हुआ जिसके अन्त में महाभारत का युद्ध हुआ था। इस पर महर्षि वेदव्यास ने इतिहास के रूप में महाभारत का ग्रन्थ लिखा जिसमें योगेश्वर श्री कृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन आदि पाण्डव एवं कौरव वंश का वर्णन है।  इस  प्रकार  न्यूनतम 8.64+0.051=8.691 लाख वर्ष से भी सहस्रों वर्ष पूर्व इस भारत की धरती पर श्री रामचन्द्र जी उत्पन्न वा जन्में थे। यह श्री रामचन्द्र जी ऐसी पिता व माता की सन्तान थे जो आर्यराजा थे और जो ऋषियों की वेदानुकूल शिक्षाओं का आचरण वा पालन करते थे। श्री रामचन्द्र जी की माता कौशल्या भी वैदिक धर्मपरायण नारी थी जो प्रातः व सायं सन्ध्या व दैनिक अग्निहोत्र करती थीं।

 

वाल्मीकि जी ने श्री रामचन्द्र जी के जीवन पर रामायण ग्रन्थ की रचना क्यों की? इस संबंध में रामायण में ही वर्णन मिलता है कि वाल्मीकि जी संस्कृत भाषा के एक महान कवि थे। वह एक ऐसे मनुष्य का इतिहास लिखना चाहते थे जो गुण कर्म व स्वभाव में अपूर्व, श्रेष्ठ व अतुलनीय हो। नारद जी से पूछने पर उन्होंने श्री रामचन्द्र जी का जीवन वृतान्त वर्णन कर दिया जिसको वाल्मीकि जी ने स्वीकार कर रामायण नामक ग्रन्थ लिखा। आर्यजाति के सौभाग्य से आज लाखों वर्ष बाद भी यह ग्रन्थ शुद्ध रूप में न सही, अपितु किंचित प्रक्षेपों के साथ उपलब्ध होता है जिसे पढ़कर श्री रामचन्द्र जी के चरित्र किंवा व्यक्तित्व व कृतित्व को जाना जा सकता है। सभी मनुष्य जिन्होंने वाल्मीकि रामायण को पढ़ा है वह जानते हैं कि श्री रामचन्द्र के समान इतिहास में ऐसा श्रेष्ठ चरित्र उपलब्ध नहीं है और न हि भविष्य में आशा की जा सकती है। यद्यपि भारत में अनेक ऋषि मुनि व विद्वान हुए हैं जिनका जीवन व चरित्र भी आदर्श है परन्तु श्री रामचन्द्र जी का उदाहरण अन्यतम है। इतिहास में योगेश्वर श्री कृष्ण जी, भीष्म पितामह, युधिष्ठिर जी और स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि के महनीय जीवन चरित्र भी उपलब्ध होते हैं, परन्तु श्री रामचन्द्र जी के जीवन की बात ही निराली है। वाल्मीकि जी ने जिस प्रकार से उनके जीवन के प्रायः सभी पहलुओं का रोचक और प्रभावशाली वर्णन किया है वैसी सुन्दर व भावना प्रधान रचना अन्य महापुरुषों की उपलब्ध नहीं होती है। इतना यहां अवश्य लिखना उपयुक्त है कि महर्षि दयानन्द जी का जीवन भी संसार के महान पुरुषों में अन्यतम है जिसे सभी देशवासियों व धर्मजिज्ञासु बन्धुओं को पढ़कर उससे प्रेरणा लेनी चाहिये।

 

श्री रामचन्द्र जी की प्रमुख विशेषतायें क्या हैं जिनके कारण वह देश व संसार में अपूर्व रूप से लोकप्रिय हुए। इसका कारण है कि वह एक आदर्श पुत्र, अपनी तीनों माताओं का समान रूप से आदर करने वाले, आदर्श भाई, आदर्श पति, गुरुजनों के प्रिय शिष्य, आदर्श देशभक्त, वैदिक धर्म व संस्कृति के साक्षात साकार पुरूष, शत्रु पक्ष के भी हितैषी व उनके अच्छे गुणों को सम्मान देने वाले, अपने भक्तों के आदर्श स्वामी व प्रेरणा स्रोत, सज्जनों अर्थात् सत्याचरण वा धर्म का पालन करने वालों के रक्षक, धर्महीनों को दण्ड देने वाले व उनके लिए रौद्ररूप, आदर्श राजा व प्रजापालक, वैदिक धर्म के पालनकर्त्ता व धारणकर्त्ता सहित यजुर्वेद आदि के ज्ञाता व विद्वान थे। इतना ही नहीं ऐसा कोई मानवीय श्रेष्ठ गुण नहीं था जो उनमें विद्यमान न रहा हो। यदि ऐसे व इससे भी अधिक गुण किसी मनुष्य में हों तो वह समाज व देश का प्रिय तो होगा ही। इन्हीं गुणों ने श्री रामचन्द्र जी को महापुरुष एवं अल्पज्ञानी व अज्ञानी लोगों ने उन्हें ईश्वर के समान पूजनीय तक बना दिया। बाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री रामचन्द्र जी मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, ईश्वर नहीं। अजन्मा व सर्वव्यापक सृष्टिकर्ता ईश्वर मनुष्य जन्म ले ही नहीं सकता। यही कारण है कि रामायण को इतिहास का ग्रन्थ स्वीकार कर महर्षि दयानन्द ने उसे विद्यार्थियों की पाठविधि में सम्मिलित किया है।

 

उपलब्ध साहित्य के आधार पर प्रतीत होता है कि महाभारत काल तक भारत में एक ही रामायण वाल्मीकि रामायण विद्यमान थी। महाभारत के बाद दिन प्रतिदिन धार्मिक व सांस्कृतिक पतन होना आरम्भ हो गया। संस्कृत भाषा जो महाभारत काल तक देश व विश्व की एकमात्र भाषा थी, उसके प्रयोग में भी कमी आने लगी और उसमें विकार होकर नई नई भाषायें बनने लगी। इस का परिणाम यह हुआ कि भारत के अनेक भूभागों में समय के साथ अनेक भाषाये व बोलियां अस्तित्व में आईं जो समय के साथ पल्लिवित और पुष्पित होती रहीं। संस्कृत भाषा के प्रयोग में कमी से वेदों व वैदिक धर्म की मान्यताओं में भी विकृतियां उत्पन्न होने लगीं जिसके परिणामस्वरूप देश में अवतारवाद की कल्पना, मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, यज्ञों में हिंसा, मांसाहार का व्यवहार, जन्मना जातिवाद की उत्पत्ति व उसका व्यवहार, छुआछूत, स्त्रियों व शूद्रों को वेदाधिकार से वंचित करने, बालविवाह, पर्दा प्रथा, जैसे विधान बने। समय के साथ मत-मतान्तरों की संख्या में भी वृद्धि होती गई। वैष्णवमत ने श्री रामचन्द्र जी को ईश्वर का अवतार मानकर उनकी पूजा आरम्भ कर दी गई। देश में मुद्रण कला का आरम्भ न होने से अभी हस्तलिखित ग्रन्थों का ही प्रचार था। संस्कृत का प्रयोग कम हो जाने व नाना भाषायें व बोलियों के अस्तित्व में आने के कारण धर्म व कर्म को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से कथा आदि की आवश्यकता भी अनुभव की गई। श्री रामचन्द्र जी की भक्ति व पूजा का प्रचलन बढ़ रहा था। सौभाग्य से ऐसे अज्ञान व अन्धविश्वासों के युग में गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म होता है और उनके मन में श्री रामचन्द्र जी का जीवनचरित लिखने का विचार उत्पन्न होता है। इसकी पूर्ति रामचरित मानस के रूप में होती है। यह ग्रन्थ लोगों की बोलचाल की भाषा में होने के कारण इस ग्रन्थ ने रामचन्द्र जी का ऐतिहासिक व प्रमाणिक ग्रन्थ होने का स्थान प्राप्त कर लिया। इसका प्रचार व पाठ होने लगा। देश के अनेक भागों में उन-उन स्थानों के कवियों ने वहां की भाषा में वाल्मीकि रामायण व रामचरित मानस से प्रेरणा पाकर श्री रामचन्द्र जी के पावन जीवन व चरित्र को परिलक्षित करने वाले अनेक ग्रन्थ लिखे जिससे देश भर में रामचन्द्र जी ईश्वर के प्रमुख अवतार माने जाने लगे व उनकी पूजा होने लगी। आज भी यह चल रही है परन्तु विगत एक सौ वर्षों में देश में नाना मत, सम्प्रदाय, धार्मिक गुरू आदि उत्पन्न हुए हैं जिससे श्रीरामचन्द्र जी की पूजा कम होती गई व अन्यों की बढ़ती गई। भविष्य में क्या होगा उसका पूरा अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हां, इतना कहा जा सकता है कि रामचन्द्र जी की पूजा कम हो सकती है और वर्तमान और भविष्य में उत्पन्न होने वाले नये नये गुरूओं की पूजा में वृद्धि होगी। मध्यकाल में श्री रामचन्द्र जी की पूजा व भक्ति ने मुगलों के भारत में आक्रमण व धर्मान्तरण में हिन्दुओं के धर्म की रक्षा की। यदि श्रीरामचन्द्र जी की पूजा प्रचलित न होती तो कह नहीं सकते कि धर्म की अवनति किस सीमा तक होती। संक्षेप में यह कह सकते हैं कि रामायण और रामचरितमानस ने मुगलों व मुगल शासकों के दमनचक्र के काल में हिन्दुओं की धर्मरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

 

श्री रामचन्द्र जी का जीवन विश्व की मनुष्यजाति के लिए आदर्श है। उसका विवेकपूर्वक अनुकरण जीवन के लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्रदान कराने वाला है। वाल्मीकि रामायण के अध्ययन से हम प्रेरणा ग्रहण कर अपने जीवन को वेदानुगामी बना सकते हैं जैसा कि श्री रामचन्द्र जी व उनके समकालीन महर्षि बाल्मीकि जी आदि ने बनाया था। इसमें महर्षि दयानन्द का जीवन व दर्शन सर्वाधिक सहायक एवं मार्गदर्शक है। रामनवमी मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी का पावन जन्मदिवस है। उसको मनाते हुए हमें धर्मपालन करने और धर्म के विरोधियों के प्रति वह भावना रखते हुए व्यवहार करना है जो कि श्री रामचन्द्र जी करते थे। हमें यह भी लगता है कि आधुनिक समय में श्रीरामचन्द्र जी के प्रतिनिधि महर्षि दयानन्द हुए हैं व अब उनका आर्यसमाज उनके समान नई पीढ़ी के निर्माण का कार्य कर रहा है। इस कार्य में हमारे सैकड़ों गुरुकुल लगे हुए हैं। हमारे अनेक विद्वान, साधु व महात्मा श्री रामचन्द्र जी के समान वेद मार्ग पर चल रहे हैं। आज रामनवमी को हमें श्री रामचन्द्र जी को ईश्वर मानकर नहीं अपितु संसार के श्रेष्ठ व श्रेष्ठतम महापुरूष के रूप में उनका आदर व सम्मान करना है और उनके जीवन से शिक्षा लेकर उनके अनुरूप अपने जीवन को बनाना है। इसी के साथ विचारों को विराम देते हैं।

 

मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121

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