न दत्त्वा कस्य चित्कन्यां पुनर्दद्याद्विचक्षणः । दत्त्वा पुनः प्रयच्छन्हि प्राप्नोति पुरुषानृतम् ।

किन्तु (मनीषिणा) बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि इन सबको यथाशक्ति न्यायानुसार भोजन, वस्त्र आदि (दातुम्) देता रहे इस प्रकार न देने वाला ’पतित’ माना जायेगा ।

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