(यस्य तु दत्रिमः पुत्रः) जिसका दत्तक = गोद लिया हुआ पुत्र (सर्वैः गुणैः उपपन्नः) सभी श्रेष्ठ या वर्णोचित पुत्रगुणों से सम्पन्न हो, (अन्यगोत्रतः सम्पाप्तः + अपि) चाहे वह दूसरे वंश का ही क्यों न हो (सः तत् रिक्थं हरेत एव) वह उस गोद लेने वाले पिता के धन को निश्चित रूप से प्राप्त करता है ।
नियोग से उत्पन्न क्षत्रेण पुत्र के दायभाग का विधान—