भ्रातुर्ज्येष्ठस्य भार्या या गुरुपत्न्यनुजस्य सा । यवीयसस्तु या भार्या स्नुषा ज्येष्ठस्य सा स्मृता

(यः) जो (सुतः) पुत्र (पितरम्) माता-पिता को (पम् नाम्नः नरकात्) पुम्= वृद्धावस्था आदि से उत्पन्न होने वाले दुःखों से (त्रायते) रक्षा करता है (तस्मात्) इस कारण से (स्वयंभुवा स्वयमेव पुत्रः इति प्रोक्तः) स्वयंभू ईश्वर ने वेदों में बेटे को ’पुत्र’ संज्ञा से अभिहित किया है (द्रष्टव्य है—’सर्वेषां तु स नामानि………….वेदशब्देभ्य एवादौ………….निर्ममे’ ।

दत्तकपुत्र के दायभाग का विधान—

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