संक्रम अर्थात् रथ, उस रथ के ध्वजा की यष्टि जिसके ऊपर ध्वजा बाँधी जाती है और प्रतिमा =छटांक आदिक बटखरे जो इन तीनों को तोड़ डाले वा अधिक न्यून कर देवे उनको उससे राजा बनवा लेवे और जिसका जैसा ऐश्वर्य, उसके योग्य दण्ड करे—जो दरिद्र होवे तो उससे पांच सौ पैसा राजा दण्ड लेवे, और जो कुछ धनाढ्य होवे तो पांच सौ रूपया उससे दण्ड लेवे; और जो बहुत धनाढ्य होवे उससे पां सौ अशर्फी दण्ड लेवे । रथादिकों को उसी के हाथ से बनवा लेवे । (द. शा. 51, प. वि. 12)