शय्यासनं अलङ्कारं कामं क्रोधं अनार्जवं ंःअनार्यताम्] । द्रोहभावं कुचर्यां च स्त्रीभ्यो मनुरकल्पयत् ।

’स्त्री के पति का ही पुत्र होता है’ ऐसा माना जाता है किन्तु पति के विषय में दो विचार है—कुछ लोग पुत्र उत्पन्न करने वाले को ही पुत्र का हकदार कहते हैं दूसरे कुछ लोग क्षेत्र अर्थात् स्त्री के स्वामी को पुत्र का हकदार मानते है (चाहे उत्पादक कोई भी हो) ।

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