यो ज्येष्ठो ज्येष्ठवृत्तिः स्यान्मातेव स पितेव सः । अज्येष्ठवृत्तिर्यस्तु स्यात्स संपूज्यस्तु बन्धुवत्

यः ज्येष्ठः) जो बड़ा भाई (ज्येष्ठवृत्तिः) बड़ों अर्थात् पिता आदि के समान बर्ताव करने वाला हो तो (सः पिता + इव, सः माता +इव संपूज्यः) वह पिता और माता के समान माननीय है (यः तु) और जो (अज्येष्ठवृत्ति स्यात्) बड़ो अर्थात् पिता आदि के समान बर्ताव करने वाला न हो तो (सः तु बन्धुवत्) वह केवल भाई या मित्र की तरह ही मानने योग्य होता है ।

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