तुलामानं प्रतीमानं सर्वं च स्यात्सुलक्षितम् । षट्सु षट्सु च मासेषु पुनरेव परीक्षयेत्

तराजू और प्रतिमान – बाट सब ठीक – ठीक रखने चाहिए, और छः – छः महीने में इनकी परीक्षा राजा करावे ।

(द० ल० सं० २०)

‘‘मनुस्मृति में तो प्रतिमा शब्द करके रत्ती, छटांक, पाव, सेर और पंसेरी आदि तोल के साधनों का ग्रहण किया है क्यों कि तुलामान अर्थात् तराजू और प्रतीमान वा प्रतिमा अर्थात् बाट इनकी परीक्षा राजा लोग छठे – छठे मास अर्थात् छः – छः महीने में एक बार किया करें कि जिससे उनमें कोई व्यवहारी किसी प्रकार की छल से घट – बढ़ न कर सकें और कदाचित् कोई करे तो उसको दण्ड देवें ।’’

(द० शा० सं० ५० एवं ऋ० प० वि० ११)

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