येन येन यथाङ्गेन स्तेनो नृषु विचेष्टते । तत्तदेव हरेत्तस्य प्रत्यादेशाय पार्थिवः

चोर जिस प्रकार जिस – जिस अंग से मनुष्यों में विरूद्ध चेष्टा करता है उस – उस अंग को सब मनुष्यों को शिक्षा के लिए राजा हरण अर्थात् छेदन कर दे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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