सभां वा न प्रवेष्टव्यं वक्तव्यं वा समञ्जसम् । अब्रुवन्विब्रुवन्वापि नरो भवति किल्बिषी ।

धार्मिक मनुष्य को योग्य है कि सभा में कभी प्रवेश न करे और जो प्रवेश किया हो तो सत्य ही बोले जो कोई सभा में अन्याय होते हुए को देखकर मौन रहे अथवा सत्य, न्याय के विरूद्ध बोल वह महापापी होता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

‘‘मनुष्य को योग्य है कि सभा में प्रवेश न करे, यदि सभा में प्रवेश करे तो सत्य ही बोले । यदि सभा में बैठा हुआ भी असत्य बात को सुनके मौन रहे अथवा सत्य के विरूद्ध बोले वह मनुष्य अतिपापी है ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

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