प्रथम वाणी का दण्ड अर्थात् उसकी ‘निन्दा’ दूसरा ‘धिक्’ दण्ड अर्थात् तुझको धिक्कार है, तूने ऐसा बुरा काम क्यों कि तीसरा – उससे धन लेना, और ‘वध’ दण्ड अर्थात् उसको क्रीड़ा या बेंत से मारना वा शिर काट देना ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
प्रथम वाणी का दण्ड अर्थात् उसकी ‘निन्दा’ दूसरा ‘धिक्’ दण्ड अर्थात् तुझको धिक्कार है, तूने ऐसा बुरा काम क्यों कि तीसरा – उससे धन लेना, और ‘वध’ दण्ड अर्थात् उसको क्रीड़ा या बेंत से मारना वा शिर काट देना ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)