सोऽसहायेन मूढेन लुब्धेनाकृतबुद्धिना । न शक्यो न्यायतो नेतुं सक्तेन विषयेषु च ।

जो राजा उत्तम सहायरहित, मूढ़ लोभी जिसने ब्रह्मचर्यादि उत्तम कर्मों से विद्या और बुद्धि की उन्नति नहीं की जो विषयों में फंसा हुआ है उससे वह दण्ड कभी न्यायपूर्वक नहीं चल सकता ।

(स० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘क्यों कि जो आप्तपुरूषों के सहाय, विद्या सुशिक्षा से रहित, विषयों में आसक्त मूढ़ है, वह न्याय से दण्ड को चलाने में समर्थ कभी नहीं हो सकता ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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