संहतान्योधयेदल्पान्कामं विस्तारयेद्बहून् । सूच्या वज्रेण चैवैतान्व्यूहेन व्यूह्य योधयेत्

जो थोड़े पुरूषों से बहुतों के साथ युद्ध करना हो तो मिलकर लड़ावें और काम पड़े तो उन्हीं को झट फैला देवें, जब नगर, दुर्ग वा शत्रु की सेना में प्रविष्ट होकर युद्ध करना हो तब ‘सूचीव्यूह’ तथा ‘वज्रव्यूह’ जैसा दुधारा खड्ग, दोनों ओर युद्ध करते जायें और प्रविष्ट भी होते चलें वैसे अनेक प्रकार के व्यूह अर्थात् सेना को बनाकर लड़ावें ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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