एताश्चान्याश्च सेवेत दीक्षा विप्रो वने वसन् । विविधाश्चाउपनिषदीरात्मसंसिद्धये श्रुतीः

. इस प्रकार वन में बसता हुआ इन और अन्य दीक्षाओं का सेवन करे और आत्मा तथा परमात्मा के ज्ञान के लिए नाना प्रकार की उपनिषद् अर्थात् ज्ञान और उपासना विधायक श्रुतियों के अर्थों का विचार किया करे ।

(सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)

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