Adhyay : 5 Mantra : 87 Back to listings नारं स्पृष्ट्वास्थि सस्नेहं स्नात्वा विप्रो विशुध्यति । आचम्यैव तु निःस्नेहं गां आलभ्यार्कं ईक्ष्य वा Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related