जो धर्म ही से पदार्थों का संचय करना है वही सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता अर्थात् जो अन्याय से किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं करता वही पवित्र है, किन्तु जल, मृत्तिका आदि से जो पवित्रता होती है, वह धर्म के सदृश उत्तम नहीं होती ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
जो धर्म ही से पदार्थों का संचय करना है वही सब पवित्रताओं में उत्तम पवित्रता अर्थात् जो अन्याय से किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं करता वही पवित्र है, किन्तु जल, मृत्तिका आदि से जो पवित्रता होती है, वह धर्म के सदृश उत्तम नहीं होती ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)