सर्वं परवशं दुःखं सर्वं आत्मवशं सुखम् । एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः

क्यों कि जितना परवश होना है वह सब दुःख, और जितना स्वाधीन रहना है वह सब सुख कहाता है यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानो ।

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘क्यों कि जो – जो पराधीनता है वह – वह सब दुःख और जो – जो स्वाधीनता है वह – वह सब सुख, यही संक्षेप से सुख और दुःख का लक्षण जानना चाहिए ।’’

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *