जैसे वायु के आश्रय से सब जीवों का वत्र्तमान सिद्ध होता है (तथा) वैसे ही गृहस्थ के आश्रय से ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी अर्थात् सब आश्रमों का निर्वाह होता है ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
जैसे वायु के आश्रय से सब जीवों का वत्र्तमान सिद्ध होता है (तथा) वैसे ही गृहस्थ के आश्रय से ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी अर्थात् सब आश्रमों का निर्वाह होता है ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)