. जिन कुल और घरों में अपूजित अर्थात् सत्कार को न प्राप्त होकर स्त्रीलोग जिन गृहस्थों को शाप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों ओर से नष्ट – भ्रष्ट हो जाते हैं ।
(सं० वि० अन्नप्राशन सं०)
‘‘जो विवाहित स्त्रियाँ पति, माता, पिता, बन्धु और देवर आदि से दुःखित होके जिन घर वालों को शाप देती हैं, वे जैसे किसी कुटुम्ब भर को विष देके मारने से एक बार सबके सब मर जाते हैं, वैसे उनके पति आदि सब ओर से नष्ट – भ्रष्ट हो जाते हैं ।’’
(ऋ० पत्र वि० ४४४)