पुत्र के अधिक वीर्य होने से पुत्र स्त्री का आत्र्तव अधिक होने से कन्या तुल्य होने से नपुंसक पुरूष वा गन्ध्य स्त्री क्षीण और अल्पवीर्य से गर्भ का न रहना वा रहकर गिर जाना होता है ।
(स० वि० गर्भापान सं०)
पुत्र के अधिक वीर्य होने से पुत्र स्त्री का आत्र्तव अधिक होने से कन्या तुल्य होने से नपुंसक पुरूष वा गन्ध्य स्त्री क्षीण और अल्पवीर्य से गर्भ का न रहना वा रहकर गिर जाना होता है ।
(स० वि० गर्भापान सं०)