ऋतुकाल – सम्बन्धी विधान –
स्त्रियों का स्वाभाविक ऋतुकाल सोलह रात्रि का है अर्थात् रजोदर्शन दिन से लेके सोलहवें दिन तक ऋतु समय है उनमें से प्रथम की चार रात्रि अर्थात् जिस दिन रजस्वला हो उस दिन से लेके चार दिन निन्दित हैं ।
(सं० वि० गर्भाधान सं०)
‘‘प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ रात्रि में पुरूष स्त्री का स्पर्श और स्त्री – पुरूष का समबन्ध कभी न करे अर्थात् उस रजस्वला के हाथ का छुआ पानी भी न पीवे, न वह स्त्री कुछ काम करे, किन्तु एकान्त में बैठी रहे । क्यों कि इन चार रात्रियों में समागम करना व्यर्थ और महारोगकारक है ।’’
(सं० वि० गर्भाधान सं०)