विघसाशी भवेन्नित्यं नित्यं वामृतभोजनः । विघसो भुक्तशेषं तु यज्ञशेषं तथामृतम्

गृहस्थ के लिए दो ही प्रकार के भोजनों का विधान

गृहस्थी को चाहिए कि वह प्रतिदिन ‘विघस’ भोजन को खाने वाला होवे अथवा ‘अमृत’ भोजन को खाने वाला होवे अतिथि, मित्रो आदि सभी व्यक्तियों के खा लेने पर बचा भोजन को ‘विघस’ कहा जाता है (३।११६,११७) (तथा) यज्ञ में आहुति देने के बाद बचा भोजन ‘अमृत’ कहलाता है (३।११८)।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *