पञ्चानां तु त्रयो धर्म्या द्वावधर्म्यौ स्मृताविह । पैशाचश्चासुरश्चैव न कर्तव्यौ कदा चन ।

प्रक्षिप्त श्लोक

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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