Adhyay : 3 Mantra : 154 Back to listings यक्ष्मी च पशुपालश्च परिवेत्ता निराकृतिः । ब्रह्मद्विट्परिवित्तिश्च गणाभ्यन्तर एव च । Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related