यावतो ग्रसते ग्रासान्हव्यकव्येष्वमन्त्रवित् । तावतो ग्रसते प्रेतो दीप्तशूलर्ष्ट्ययोगुडान् ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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