Adhyay : 3 Mantra : 131 Back to listings सहस्रं हि सहस्राणां अनृचां यत्र भुञ्जते । एकस्तान्मन्त्रवित्प्रीतः सर्वानर्हति धर्मतः Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related