विप्रोष्य पादग्रहणं अन्वहं चाभिवादनम् । गुरुदारेषु कुर्वीत सतां धर्मं अनुस्मरन् । ।

शिष्य सतां धर्मम् अनुस्मरन् श्रेष्ठों के धर्म को स्मरण करते हुए अर्थात् यह विचारते हुए कि स्त्रियों को अभिवादन करना श्रेष्ठ – शिष्ट व्यक्तियों का कर्तव्य है गुरूदारेषु गुरूपत्नियों को अन्वहम् अभिवादनं कुर्वीत प्रति – दिन अभिवादन करे च और विप्रोष्य परदेश से लौटकर पादग्रहणम् चरणस्पर्श कर अभिवादन करे ।

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