चारणाश्च सुपर्णाश्च पुरुषाश्चैव दाम्भिकाः । रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसीषूत्तमा गतिः

जो उत्तम तमोगुणी हैं वे चारण=जो कि कवित्त, दोहा आदि बनाकर मनुष्यों की प्रशंसा करते हैं, सुन्दर पक्षी, दाम्भिक पुरुष अर्थात् अपने सुख के लिए अपनी प्रशंसा करने हारे, राक्षस जो हिंसक, पिशाच=अनाचारी अर्थात् मद्य आदि के आहारकर्ता और मलिन रहते है वह उत्तम तमोगुण के कर्म का फल है ।

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