तत्र यत्प्रीतिसंयुक्तं किं चिदात्मनि लक्षयेत् । प्रशान्तं इव शुद्धाभं सत्त्वं तदुपधारयेत् । । १

उसका विवेक इस प्रकार करना चाहिए कि जब आत्मा में प्रसन्नता मन प्रसन्न प्रशान्त के सदृश शुद्धभानयुक्त वर्ते तब समझना की सत्वगुण प्रधान और रजोगुण तथा तमोगुण अप्रधान है । (स. प्र. नवम समु.)

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