एवं संचिन्त्य मनसा प्रेत्य कर्मफलोदयम् । मनोवाङ्गूर्तिभिर्नित्यं शुभं कर्म समाचरेत् ।

’मरकर कर्मों का फल अवश्य मिलेगा’´मन में, इस विचार को रखते हुए मनुष्य मन, वाणी और शरीर से सदा शुभ कार्य करे

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