अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानात्कृत्वा कर्म विगर्हितम् । तस्माद्विमुक्तिं अन्विच्छन्द्वितीयं न समाचरेत्

अज्ञान से अथवा जानबूजकर निन्दित कर्म करके मनुष्य उस पाप-प्रवृत्ति से छुटकारा पाने के लिए दुबारा पाप न करे (तभी पाप-प्रवृत्ति से छुटकारा मिल सकता है, अन्यथा नहीं) ।

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