स्वयं वा शिष्णवृषणावुत्कृत्याधाय चाञ्जलौ । नैरृतीं दिशं आतिष्ठेदा निपातादजिह्मगः ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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