Adhyay : 11 Mantra : 104 Back to listings स्वयं वा शिष्णवृषणावुत्कृत्याधाय चाञ्जलौ । नैरृतीं दिशं आतिष्ठेदा निपातादजिह्मगः । Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related