मनुस्मृति के प्रवक्ता और उसके काल-निर्धारण सबन्धी प्रश्न का यह समाधान आज के लेखकों को सर्वाधिक चौंकाने वाला है। कारण यह है कि वे पाश्चात्य लेखकों द्वारा कपोलकल्पित कालनिर्धारण के रंग में इतने रंग चुके हैं कि उन्हें परपरागत सत्य, असत्य प्रतीत होता है; और कपोलकल्पित असत्य, सत्य प्रतीत होता है। आंकड़ों के अनुसार, परपरागत और पाश्चात्यों द्वारा निर्धारित मनुस्मृति के काल-निश्चय में दिन-रात या पूर्व-पश्चिम का मतान्तर है। यह तथ्य है कि भारतीय मत की पुष्टि एक सपूर्ण परपरा करती है। परपरागत सपूर्ण वैदिक एवं लौकिक भारतीय साहित्य ‘मनुस्मृति’ या ‘मानवधर्मशास्त्र’ को मूलतः मनु स्वायभुव द्वारा रचित मानता है और मनु का काल वर्तमान मानवसृष्टि का आदिकाल मानता है। इस प्रकार आदिकालीन स्वायभुव मनु की रचना होने से मनुस्मृति का काल भी वेदों के बाद वर्तमान मानवसृष्टि का आदिकाल है।
कुछ पाश्चात्य लेखक और उनकी शिक्षा-दीक्षा से अनुप्राणित उनके अनुयायी आधुनिक भारतीय लेखक मनुस्मृति का रचनाकाल 185-100 ई0 पूर्व ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र शुङ्ग के जीवनकाल में मानते हैं। यह मत प्रो0 यूलर द्वारा निर्धारित है और तत्कालीन पाश्चात्य लेखकों द्वारा मान्य है। इस मतान्तर पर अपना निर्णय देने से पूर्व मैं यहा पाश्चात्यों द्वारा स्थापित मान्यताओं एवं कालनिर्धारण के मूल में उनकी मानसिकता, लक्ष्य एवं उसकी अप्रामाणिकता पर कुछ चर्चा विस्तार से करना अत्यावश्यक समझता हूं।
यह स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने अपने राजनीतिक और धार्मिक निहित लक्ष्य की पूर्ति हेतु, हजारों वर्ष पुराने भारतीय इतिहास और साहित्य की घोर उपेक्षा करके, केवल 150 वर्ष पूर्व, कपोलकल्पना द्वारा कुछ नयी मान्यताएं गढ़ीं और नये सिर से एक काल्पनिक कालनिर्धारण प्रस्तुत किया। भारतीय इतिहास को अपने स्वार्थ के अनुरूप परिवर्तित, विकृत और अस्त-व्यस्त किया। भारतीय इतिहास, संस्कृति, सयता, ऐतिहासिक व्यक्ति आदि प्राचीन सिद्ध न हों, इस कारण उन्हें ‘माइथोलॉजी’ ‘मिथक’ कहकर अप्रामाणिक बनाने का प्रयास किया। मैक्समूलर ने स्वयं स्वीकार किया है कि वैदिक साहित्य और वेद आदि का काल आनुमानिक है। आगे चलकर तो उन्होंने इनके कालनिर्धारण में असमर्थता भी प्रकट कर दी थी। फिर भी आज हम उनके कालनिर्धारण को प्रमाणिक मान रहे हैं और परपरागत भारतीय कालनिर्धारण को अप्रामाणिक कह रहे हैं, जबकि तटस्थ अंग्रेज और यूरोपियन लेखकों ने उनको प्रमाणिक नहीं माना है। वर्तमान में प्रचलित मनु और मनुस्मृति का कालनिर्धारण (185-100 वर्ष ई0 पू0) उपनिवेशवादी अंग्रेजों की ही कपोल-कल्पित देन है।
वास्तविकता यह है कि ज्यों-ज्यों पुरातत्व-विज्ञान, भाषाविज्ञान, भूगोल, ज्योतिष-संबंधी नवीन खोजें हुई हैं, त्यों-त्यों उन अंग्रेज लेखकों द्वारा स्थापित मान्यताएं एक-एक करके ढही हैं और भारतीय स्थापनाओं में बहुत की समग्रतः या अधिकांशतः पुष्टि हुई है। अंग्रेजों और उनके अनुयायियों ने बाइबल तथा डार्विन के विकासवाद के आधार पर मनुष्य की उत्पत्ति कभी दस हजार वर्ष पूर्व बताई थी और भारतीय साहित्य में वर्णित लाखों वर्ष पूर्व मानव के अस्तित्व विषयक संदर्भों को गप्प कहा था। आज के वैज्ञानिक दस हजार से हटकर दो लाख वर्ष पूर्व तक की मान्यता पर पहुंच गये हैं। पचास से पैंतीस हजार वर्ष पूर्व की तो अस्थियां भी पायी गई हैं। उन्होंने एक अरब छियानवे करोड़ के भारतीय सृष्टिसंवत् को सुनकर उसे महागप्प कहकर मखौल उड़ाया था। मैडम क्यूरी की रेडियम की खोज ने उसकी पुष्टि कर दी। अमेरिका की उपग्रह-संस्था ‘नासा’ ने पिछले दिनों उपग्रह के द्वारा भारत-श्रीलंका के बीच समुद्र में डूबे पुल को खोजा और उसका काल लाखों वर्ष पूर्व निर्धारित किया। एक गणना के अनुसार, यह रामायण के काल से मिलता है। महाभारत को काल्पनिक मानने वाले लोगों को, पाश्चात्य ज्योतिषी बेली ने ग्रहयुति के ज्योतिषीय आधार पर बताया कि महाभारत युद्ध 3102 ईसा पूर्व हुआ था।
महाभारत में वर्णित श्रीकृष्ण की ‘द्वारका’ नगरी को पुरातत्वविद् डॉ0 एस.आर. राव ने खोज निकाला। अमेरिका के मैक्सिको में मिले ‘मय-सयता’ के अद्भुत अवशेषों ने वैदिक काल के मय वंश को प्रमाणित कर दिया। ‘इंडिया इन ग्रीस’ में मिस्र के प्राचीन इतिहास के आधार पर बताया गया है कि वहां के निवासी हेमेटिक लोग ‘मनु वोवस्वत्’ (वैवस्वत) के वंशज हैं और उनके पिरामिडों में मिलने वाला सूर्यचिन्ह उस आदि पुरुष के सूर्यवंश का प्रतीक है। तुर्की और भारत में खुदाई में मिले वैदिक सयता के सूचक विभिन्न पुरावशेषों का काल पन्द्रह हजार वर्ष ईस्वी पूर्व तक आंका गया है।
कहने का अभिप्राय यह है कि नवीन खोजों के सन्दर्भ में, कुछ अंग्रेजों द्वारा प्रस्तुत कालनिर्धारण अर्थहीन और मूल्यहीन हो चुका है। आज वे कल्पित स्थापनाएं धराशायी हो चुकी हैं। ऐसे में उनको स्वीकार करने का औचित्य ही नहीं बनता। हां, यह कटु सत्य है कि कुछ लोग और वर्ग अपने नकारात्मक पूर्वाग्रहों, निहित स्वार्थों और निहित सामाजिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए उपनिवेशवादी अंग्रेजों द्वारा कल्पित मान्यताओं एवं काल-सीमाओं को बनाए रखना चाहते हैं।
अधिकांश विचारक इस मत से सहमत हैं कि मनुस्मृति का मूल प्रवक्ता मनु है और वह भी आदिकालीन ब्रह्मा का पुत्र स्वायभुव मनु ही है। इस मत को वर्णित करने वाली एक सपूर्ण साहित्यिक परपरा मिलती है। मैं भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं। इस सबन्ध में प्राप्त सामग्री के आधार पर दो प्रकार से विचार किया जा सकता है-