मनसापरिक्रमा विषय

energy everywhere

About Mansaparikrama  मनसापरिक्रमा विषय

AV3.26 & 3.27  

दो अथर्व वेद सूक्त 3.26 और 3.27 एक ही विषय पर समष्टि और व्यष्टि  रूप से उपदेश द्वारा मानव जीवनके मार्ग का निर्देश करते हैं. दोनों को एक साथ स्वाध्याय पर आधारित  मेरे  व्यक्तिगत विचार विद्वत्जनों के टिप्पणि के लिए प्रस्तुत हैं .

Two Atharv ved sookts 3.26 and 3.27 appear to give guidance on the same subject , AV3.26 on macro level and AV3.27 on micro earthly level. My personal understanding and interpretation of these two complimentary Vedic sookts is submitted for consideration and comments of learned persons

ऋषि:- अथर्वा |  देवता-अन्न्यादय: नाना देवता

  1. येऽस्यां स्थ प्राच्यां दिशि हेतयो नाम देवास्तेषां वो अग्निरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.1

 

पूर्व दिशा में हमारे  सम्मुख  स्थित (सूर्य) प्रत्यक्ष रूप से तम के  आसुरी भावों   (आलस्य, निद्रा , प्रमाद  , अवसाद जैसी तामसिक अंधकारमयी वृत्तियों का ) नाश कर के समस्त संसार को रात्रि की निद्रा से उठा कर स्वप्रेरित  दैनिक दिनचर्या में उद्यत  करता है |  सूर्याग्नि –ऊर्जावान  देवत्व से उपलब्ध निरन्तर चरैवेति चरैवेति प्रगतिशील  कर्मठता  की  प्रेरणा देता है. यही हमारे सुखों का साधन होता है,  विद्वत्जन- वेद विद्या ,  इस ( सुर्याग्नि)  की ऊर्जा  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के यज्ञाहुति  अर्पित  करते हैं. (यही संदेश ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’  में निहित है. एक उदाहरण के लिए संसारिक भौतिक सुख साधनों में आत्मचिंतन द्वारा आधुनिक विद्युत उत्पादन द्वारा पर्यावरण की हानि   को देखते हुए सौर ऊर्जा के प्रयोग मे प्रगति इसी दिशा में प्रगति  का द्योतक है. कहा जा रहा है कि जर्मनी शीघ्र ही अपनी विद्युत उत्पदनकी आवश्यकता का 80%  सौर  ऊर्जा द्वारा प्राप्त करने का लक्ष्य पा लेगा. इसी प्रकार स्वीडन निकट भविष्य में अपने 80%  वाहनों को अर्यावरण को क्षति पहुंचानेवाले डीज़ल पेट्रोल की बजाए पुरीष इत्यादि नागरिक कूड़े कचड़े से गैस उत्पाद से चला पाएगा. )

In the East in front of us as sun rises all negative dark tendencies (of sleepiness, laziness, procrastination, and despondency) are dispelled. Entire world by itself wakes up from rest & slumber of night and sets about its daily chores. Sun provides the inspiration to be activated with energy in our efforts to make continuous progress. This is the forbearer of our comforts in life; learned persons should explore these energy sciences and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to the Almighty and follow him with full dedication by making our offerings in Agnihotra .

( This is the essence of Vedic exhortation  ‘तमसोमामृतं गमय मृत्योर्मामृतं गमय’ . One example is that on realising the threat and damage to environments and population by reliance on fossil fuels and damage to ecology in conventional methods of electricity generation, Germany is aiming to reach the target of producing 80% of its electricity needs by Solar cogeneration. Similarly Sweden is aiming to make use of its municipal waste methane production to replace 80% of its fossil fuel needs in transport sector.)

1.प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । ।AV3.27.1 

प्राची पूर्व की दिशा में सूर्याग्नि अधिपति स्वामी  है, जो स्वतंत्र हैं  और सीमा बद्ध नहीं हैं . इन की रश्मियां (पृथ्वी पर आने वाले ) बाण स्वरूप हैं जो( भिन्न भिन्न प्रकार से)  हमारी रक्षा करते हैं.  इस सूर्य देवता को हम नमन करते हैं. उस के इन  रक्षक बाणों के प्रति हम नमन करते हैं | और जो हम से द्वेष करने वाले (तमप्रिय) रोगादि शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

In the East infinite and independent solar radiations are directed like missiles to provide energy and protection us (in many forms known as photo biology in science). We show our gratefulness to Sun for these bounties and leave our enemies such as sloth and pathogens at his disposal to deal with.

२ .येऽस्यां स्थ दक्षिणायां दिश्यविष्यवो नाम देवास्तेषां वः काम इषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.2

दक्षिण  दाहिने हाथ में स्थित कार्य कुशलता परिश्रम का संकल्प हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  (कार्यकौशल-कृष्टी) तकनीकी  विज्ञान का (अनुसंधान करें) और  हमें उपदेश करें, जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.और जो हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

In our right hand dwell the dexterous life support skills. The resolve to lead skilful action oriented life ensures self preservation and protection. Learned persons should research and develop science and technologies and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and make our offerings in Agnihotra dedicated to Him..

2.दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.2

दक्षिण – दाहने  हाथ से कर्म प्रधान जीवन का संकल्प हमारे भीतर इन्द्र का दैवत्व स्थापित करता है.(इन्द्र का भी तो  आचरण स्वयं में निर्दोष  नहीं था)  अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मतान्ध बुधि भ्रष्ट हो  कर हम  अपना संतुलन खो सकते हैं और  (तिरश्चिराजी) जैसे कुछ टेढ़े मेढ़े रास्ते  भी  अपना लेते हैं . ऐसे अवसरों पर हमारे पितरों  का, पूर्व जनों का,  शास्त्रों का  मार्ग दर्शन हमारे लिए ठीक दिशा में कार्य करने लिए हमें  दिशा निर्देश करता  है . इस इन्द्र देवत्व  के प्रति हम प्रणाम करते हैं , इंद्र द्वारा  जीवन में सुरक्षा प्रदान करने वाली उपलब्धियों को हम प्रणाम करते हैं . और जो हम से द्वेष करने वाले  हमारे अभ्युदय मे बाधक शत्रु हैं उन्हें ईश्वरीय न्याय पर  छोड़ते हैं.

  1. येऽस्यां स्थ प्रतीच्यां दिशि वैराजा नाम देवास्तेषां व आप इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । AV3.26. 3

प्रतीची दिशा में हमारी पीठ के पीछे की दिशा में (वैराजा:) अन्न के स्वामी – कृषक जन और (देवा: ) व्यवहारी अर्थात व्यापारी जन स्थित हैं जिन के लिए जल (सिंचाई के लिए ) मुख्य बाण है, हमारे जीवन में सुरक्षा  प्रदान करने का मुख्य साधन है.  विद्वत्जन- वेद विद्या से प्रेरणा लेकर  ,  कृषि तथा जल  के विज्ञान का अनुसंधान करें और  हमें उपदेश करें,जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

Unconcerned with our activities – behind our backs-without our urging, the growers of food and commercial interests operate to provide us with food security. Water resource is the most significant for their proper operations. Scientists should carry our researches in to food production and water utilizations and educate us in their use. For this act of kindness we are ever grateful to them and will follow with full dedication.

 3.प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.3

हमारे पीछे हमें बिना बताए वरुण देवता जल के भौतिक स्वरूप में  भूमि के नीचे हर स्थान पर पहुंच कर वहां  पलने वाले सूक्ष्माणुओं के अधिपति हैं. इन का दायित्व भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्न के उत्पन्न करने की  सुरक्षा है. इस के लिए हम वरुण देवता को नमन करते हैं, उन के द्वारा इस प्रकार  अन्न  की सुरक्षा की व्यवस्था को हम नमन करते हैं . और जो हमारे शत्रु जन (इन प्रकृति के नियमों के विरुद्ध  चल कर  भूमि को जल विहीन, सूक्ष्माणुओं  रहित मरुस्थल  बना कर अनुपजाउ बना देते हैं ) उन्हें  हम ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं.

At our backs, (without our urging) Warun dewataa (through water) is in charge of  Rhiozosphere where he commands by reaching everywhere in the kingdom of microorganisms living in soil. Food grown thus is the protector of our lives . We prostate ourselves to Him, and for His bounties, and leave our enemies such as destroyers of Rhizosphere and the food products to face the harsh justice of Nature.  (Modern environmental science confirms that by damaging the Rhizosphere micro flora man is turning fertile lands in to barren life less food less deserts. This is result of Nature’s relentless justice.)

  1.  येऽस्यां स्थोदीच्यां दिशि प्रविध्यन्तो नाम देवास्तेषां वो वात इषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.4

 polar area

    Aurora borealis उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश

 

यह जो उत्तर दिशा में हमारे बाएं ओर  वेगवान वायु द्वारा (पृथ्वी को) बींधने वाले  प्रक्षेपित बाण हैं ( जिन के कारण यह प्रचंड प्रकाश  दृष्टिगोचर होता है)  वे हमे आनंद प्रदान करें . जिस के लिए सदैव  श्रद्धा पूर्वक नमन कर के  यज्ञाहुति अर्पित  करते हैं.

(इस वेद मंत्र में ऋषियों ने पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टिगोचर प्रचण्ड प्रकाश को देख कर चिंतन के आधार पर अंतरिक्ष में अपार विद्युत के स्रोत की कल्पना की थी.  उसी भविष्यवाणी को आज का वैज्ञानिक यथार्थ में देखने का प्रयास करता दीखता है . आधुनिक विज्ञान के अनुसार आकाश में सूर्य  द्वारा प्रक्षेपित अत्यंत वेग प्रचंड प्रकाश  और गति से सूर्य की वायु समान उल्काएं   Solar winds आती  हैं . पृथ्वी के 100 किलोमीटर ऊपर उन के विस्फोट के  परिणाम स्वरूप एक ध्रुवीय ज्योति का प्रकाश पुंज दिखाइ  देता है . इस   उत्तरी ध्रुव पर पृथ्वी से दृष्टीगोचर आकाश में दिखाइ देने वाले प्रकाश को ओरोरा बोरिआलिस-Aurora Borealis उत्तरीय ध्रुव प्रकाश  नाम से जाना जाता है.  यह ज्योति पुंज पृथ्वी और सूर्य में निरन्तर एक विद्युत प्रवाह द्वारा क्रियामान  होता है.  इस विद्युत प्रवाह का वेग 50,000 वोल्ट की 20,000,000 एम्पीअर करेन्ट तक माना जाता है.  विख्यात वैज्ञानिक विद्युत के महान आविष्कारक निकोला टेस्ला  ने लगभग 100 वर्ष पूर्व अपने अनुसंधान पर आधारित आकाश में  इस अपरिमित विद्युत के भन्डार से पृथ्वी पर मानव की समस्त विद्युत की आवश्यकताओं को प्राप्त करने  की भविष्य वाणि की थी.

विद्युत को मोटर आदि चला कर प्रयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक  Fleming’s Left Hand Rule फ्लेमिन्ग के बाएं  हाथ का नियम बताते  हैं . यह विद्युत क्रिया प्रकृति का सहज नियम है. )

(The aurora borealis (the Northern Lights) have always fascinated mankind. The solar wind and explosive events like coronal mass ejections (CMEs) carry solar plasma (primarily energetic protons) out in to the Earth’s orbit. Often, they interact with the geomagnetic field and spiral down toward the poles (where the magnetic field is directed). On interacting with the atmosphere, light is generated, producing the aurora.

Thus auroras, the north magnetic pole (aurora borealis) occur when highly charged electrons from the solar wind interact with elements in the earth’s atmosphere. Solar winds stream away from the sun at speeds of about 1 million miles per hour. When they reach the earth, some 40 hours after leaving the sun, they follow the lines of magnetic force generated by the earth’s core and flow through the magnetosphere, a teardrop-shaped area of highly charged electrical and magnetic fields. This phenomenon is said to take place above 100 Km of earth’s surface. All of the magnetic and electrical forces react with one another in constantly shifting combinations. These shifts and flows can be seen as the auroras lights “dance,” moving along with the atmospheric currents that can reach 20,000,000 amperes at 50,000 volts. (In contrast, the circuit breakers in your home will disengage when current flow exceeds 5-30 amperes at 220 volts.)Tesla the famous inventor of AC electricity and induction motor had a favourite research topic bordering on science fiction. It was visualized that it should be possible to tap in to the inexhaustible electrical energy in the auroras for our electricity needs by every individual to have a proper antenna in his home and draw all his electricity needs, without the present systems of electricity generation and transmission).The NASA Time History of Events and Macro scale Interactions during Sub storms (THEMIS) mission The “ropes” are a 650,000 Amp electric current flowing between the Earth and the sun.In utilization of electric power in applications involving motion activity

4.उदीची दिक्सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.4

ये बांए  दिशा मे शरीर में स्थापित  मानव हृदय जो हमारी मानसिकता  में उत्पन्न मानव जीवन मूल्यों का भाव प्रधान है, जिस का सोम अधिपति है, उस के लिए प्रणाम |  मानव हृदय  स्वचालित  विद्युत नियन्त्रक नियम  से  सहज कार्य करता रहता है. यह  नियम संसार में  हमारे जीवन के सुखों का आधार बनता है. प्रकृति के इस दान के लिए हम अत्यन्त  आभारी हैं .  और इस दिशा में जो बाधा पहुंचाने वाले तत्व हैं उन्हें हम न्यायोचित परिणाम के लिए प्रकृति को ही समर्पित करते हैं .

(आधुनिक शारीरिक विज्ञान के अनुसार मानव हृदय जो निरंतर एक निश्चित गति से रक्त को  स्वच्छ कर के सारे शरीर में  शुद्ध  रक्त का संचार और दूषित पदार्थों का निकास कर  रहा है,  वह मानव शरीर मे प्रकृति द्वारा स्वत: उत्पन्न विद्युत प्रणाली के कारण से ही  है. ( यही  ऋषि  चिंतन में स्वजोरक्षिताशनि:इषव: का विज्ञान है )

इस अद्भुत विद्युत प्रणाली के लिए हम नमन करते हैं , इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे शरीर की रक्षा  के लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे हृदय के सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते   है.

On our left side is situated the ruler of all our motivations and emotions (our HEART).Its proper working operates and protects our physical body to ensures orderly life and human existence. For this blessing of Nature we are ever grateful.

{It was in deep meditation on the left side of human body that the Rishi could perceive the working of the human heart that operates continuously because it generates its own electrical  signal (also called an electrical impulse.

(Fleming’s Left Hand Rule on relations between electrical forces is very famous.  This motive action of heart electricity comes as a natural, property of electrical phenomenon. )

Modern medical science is able to record this electrical impulse  by placing electrodes on the chest. This is called an electrocardiogram (ECG, or EKG).The cardiac electrical signal controls the heartbeat in two ways. First, since each impulse leads to one heartbeat, the number of electrical impulses determines the heart rate. And second, as the electrical signal “spreads” across the heart, it triggers the heart muscle to contract in the correct sequence, thus coordinating each heartbeat and assuring that the heart works as efficiently as possible.

The heart’s electrical signal is produced by a tiny structure known as the sinus node, which is located in the upper portion of the right atrium. (You can learn about the heart’s chambers and valves here.) From the sinus node, the electrical signal spreads across the right atrium and the left atrium, causing both atria to contract, and to push their load of blood into the right and left ventricles. The electrical signal then passes through the AV node to the ventricles, where it causes the ventricles to contract in turn.

 

This left hand motor action natural property of electricity (Fleming’s Rule) provides us with great comforts in our life. For this act of kindness we are ever grateful to Nature and present the impediments in our path for Nature itself to resolve.

There is another more direct way to perceive a very close connection of self generated electricity with human body that could not escape a Rishi’s perception in meditation.  Human heart located on our left side of the body is self regulated by electronic oscillator at 60 to 70 beats per minute to make us live. Modern scientific explanation of the phenomenon is being furnished below.

heart

The rhythmic contractions of the heart which pump the life-giving blood occur in response to periodic electrical control pulse sequences. The natural pacemaker is a specialized bundle of nerve fibers called the sinoatrial node (SA node). Nerve cells are capable of producing electrical impulses called action potentials. The bundle of active cells in the SA node trigger a sequence of electrical events in the heart which controls the orderly pattern of muscle contractions that pumps the blood out of the heart.

The electrical potentials (voltages) that are generated in the body have their origin in membrane potentials where differences in the concentrations of positive and negative ions give a localized separation of charges. This charge separation is called polarization. Changes in voltage occur when some event triggers a depolarization of a membrane, and also upon the re-polarization of the membrane. The depolarization and re-polarization of the SA node and the other elements of the heart’s electrical system produce a strong pattern of voltage change which can be measured with electrodes on the skin. Voltage measurements on the skin of the chest are called an electrocardiogram or ECG.

 

heart pumping function

  1.  येऽस्यां स्थ ध्रुवायां दिशि निलिम्पा नाम देवास्तेषां व ओषधीरिषवः ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.5

वे जन जो भूमि पर आमोद प्रमोद के जीवन में स्थिर रहते हैं. उन्हें स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए शिक्षा और ओषधियों की आवश्यकता पड़ती है. वे  ओषधियां हमारे सुख का साधन है  के आभारी हैं, उन के बारे में विद्वत्जन हमें उपदेश करें  और हम अग्निहोत्र के द्वारा उन की उप्लधि से लाभान्वित  हों .

Those persons who stick to worldly routines and make merry are in need of directions by being spoken to for use of proper health care medicines. We are grateful for these remedies and perform Agnihotras dedicatedly.

5.ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.5

ध्रुवा पृथ्वी पर हमारे भौतिक जीवन के विकास का आधार विष्णु है जिस की रक्षा नाना प्रकार की वनस्पति लताओं का उदाहरण है जिन का विकास और उन्नति  पृथ्वी के स्वाभाविक गुरुत्वाकर्षण  के विरुद्ध दिशा में कार्य करने से होती है. इसी प्रकार समस्त विकास और उन्नति आराम आलस्य जैसी स्वभाविक वृत्तियों के विरुद्ध कर्मठता द्वारा ही होता है. इस व्यवस्था  के द्वारा हमारे विकास और उन्नति की व्यवस्था के  लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे अध्यवसयी कर्मठ आचरण के हमारा चित्त विचलित कर के  सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्ररीय न्याय व्यवस्था पर  छोड़ते है.

( सृष्टि  के नियमानुसार हर मरणधर्मा जब तक प्रकृति के क्षय नियम के विरुद्ध सहज स्वभाव और सद्प्रेरणा से निज प्रयत्न द्वारा जन्मोपरांत वृद्धि और शारीरिक उन्नति द्वारा यौवन बल और उन्नति को प्राप्त करता है, वही काल के नियमानुसार भौतिक जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंच कर भौतिकक्षय को जरावस्था से होते हुए मृत्यु को पाता है. परंतु अपने प्रयत्न द्वारा ‘मृत्युर्मामृतं गमय’  के लक्ष को प्राप्त करनेमें सदैव लगा रहता है ) .

On the physical plain according to laws of nature Entropy tends to infinity. Progress and growth are products of negative Entropy. We are grateful for our growth and progress for being provided with the wisdom to operate by negative Entropy. We want to protect ourselves by distractions that form obstacles by diverting us from the path of living a life of hard work to make progress by negative Entropy, and leave the superior forces of Nature and society to deal with these distractions.

( All things born grow and make progress till they progress proceeds as programmed  to peak out by negative entropy on physical plane. Inevitable march of time takes its toll by natural law of entropy tending to infinity and leads to result in extinction of the life born.)

  1.  येऽस्यां स्थोर्ध्वायां दिश्यवस्वन्तो नाम देवास्तेषां वो बृहस्पतिरिषवः  ।

ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा  । । AV3.26.6

पृथ्वी पर उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए सब दिशाओं की परिस्थितियों से सचेत रह कर ज्ञान और उत्तम वाणी के द्वारा बृहस्पति जीवन में उन्नति का साधन होता है.  बृहस्पति हमारे सुख और आनंद की रक्षा करता है. उस के लिए हम बृहस्पति को नमन करते हैं. विद्वत्जन हमरे सुख और हर्ष केलिए सदैव ज्ञान का उपदेश करें और हम सदैव अग्निहोत्र द्वारा प्रगति करें .यहां पर अग्निहोत्र का प्रसिद्ध मंत्र:-

यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा || भी इसी उपलक्ष से देखा जाता है.

The strategies that provide for our rising high in life are keen awareness about what is happening about us in all the directions. For this Brihaspati बृहस्पति knowledge and appropriate articulation are the enablers.  Brihaspati provides for our comforts and happiness. We should always get wise education and counsel to this effect. We express our obeisance for this and dedicate Agnihotras for this. Here to the same effect reference can seen in very important Agnihotra mantra: – यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ||

6.ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षं इषवः ।

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु  ।

योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः  । । AV3.27.6

भौतिक उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए बृहस्पति का आश्रय मिलता है ,जो निष्कपट निश्छल उत्तन ज्ञान और  वाणी द्वारा  इसी प्रकार आवश्यक है जैसे मेघ से वर्षा के  बाण पर्यावरण को शुद्ध  और निर्मल बना कर हमारी रक्षा करते हैं.

हम इस व्यवस्था के प्रति नमस्कार करते हैं, इस प्रकसर हमें सुर्क्षा प्रदान करने के लिए नमस्कार करते हैं  और जो ममारे इस मार्ग में शत्र्य रूपी बाधाएं होती हं उन्हें हम समाजिक ईश्वरीय न्याय पर छोड़ते हैं .

To attain great heights of success and progress we have dedicate ourselves to selfless wisdom and good articulate communication. Brihaspati  is the lord of these faculties. Our conduct should be as free of dirt and pollutants as the environment made clean by good rains from the clouds. We are grateful to Nature for this order of things and dedicate our efforts to Him and leave the impediments in our path to be dealt with higher wisdom and justice of Nature and society.

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