कुरान समीक्षा : मां से निकाह का निषेध व समर्थन

मां से निकाह का निषेध व समर्थन

सगी मां के साथ जिना (बलात्कार) या निकाह का निषेध खुदा तौरेत, जबूर, इन्जील नाम की अपनी पहली किताबों में क्यों नहीं किया था।

खुदा को बात इतने दिन बीतने पर कुरान में ही लिखाने की क्यों सूझी थी? क्या इसके यह मायने यह हैं कि अरब के लोग अपनी माँ को भी अय्याशी के लिए नहीं छोड़ते थे? क्या खुदा ने अरब वालों को उसी बुराई की वजह से तो ‘जाहिल’ नहीं घोषित किया था?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व ला त न्कहू मा न-क-हू……….।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू ३ आयत २२)

जिन औरतों के साथ तुम्हारे बाप ने निकाह किया हो तुम उनके साथ निकाह न करना, मगर जो हो चुका सो हो चुका। यह बड़ी शर्म और गजब की बात थी और बहुत बुरा दस्तूर था।

हुर्रिमत् अलैकुम् उम्महातुकुम् व………..।।

(कुरान मजीद पारा ४ सूरा निसा रूकू ४ आयत २३)

तुम्हारी मातायें, बेटियाँ तुम्हारी बहनें, बुआयें, मौसियाँ भाँन्जियाँ, भतीजियाँ दूध पिलाने वाली मातायें, दूध शरीकी बहनें और तुम्हारी सासें तुम पर हराम हैं।

समीक्षा

खुदा को यह माँ बेटे की शादी (जिना) का दस्तुर पहले पसन्द था। इसीलिए उसने कुरान द्वारा मान्य घोषित पहली खुदाई किताबों अर्थात् तौरेत जबूर और इज्जींल में इसकी कभी निदा नहीं की और न मना की थी। तौरेत के न्याय व्यवस्था अध्याय २० व २१ में लिखा है कि-

……और यदि कोई अपनी सौतेली मां के साथ सोये तो वह अपने पिता का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा, सो इसलिए वे दोनों निश्चय ही मार डाले जायें।

इसमें सौतेली मां से विवाह वा जिना का निषेध तो है पर सगी माँ से करने का निषेध कहीं नहीं किया है। कुरान लिखते समय खुदा को ध्यान आया और उसने मां से व्यभिचार या विवाह का निषेध कर दिया था। किन्तु इस्लाम के परममान्य अबू हनीफा के नजदीक मुहर्रमात अब्दियह यानी खास माँ, बहन व बेटी आदि से शरह अर्थात् इस्लाम की शरीयत के अनुसार उनसे भी निकाह कर लेना जायज है कोई पाप नहीं है।

4 thoughts on “कुरान समीक्षा : मां से निकाह का निषेध व समर्थन”

  1. तौरेत इन्जील यह कहां पर लिखा है की अपनी सगी मा से विवाह करलो । आपने ही रेफरेंस दिया है ” तौरेत जबूर और इज्जींल में इसकी कभी निदा नहीं की और न मना की थी। तौरेत के न्याय व्यवस्था अध्याय २० व २१ में लिखा है कि-
    …और यदि कोई अपनी सौतेली मां के साथ सोये तो वह अपने पिता का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा, सो इसलिए वे दोनों निश्चय ही मार डाले जायें।” सौतेली मां के साथ उसके पिता ने तो संबंध बनाया ही होगा। मक्का के मुस्रिकों में यह रिवाज था किसी से भी विवाह कर लेते थे। इसलिए उनमें कुछ पाबंदी लगायी थी इसीलिए यह बात आयी हैं जो पहले हो चुका वह माफ है

  2. इस्लाम में जिस अपराध के बारे में जानकारी नहीं है उसे किसी व्यक्ति ने कर दिया उसे अंजाने में किया गया अपराध माना जाता है , ऐसे अपराधों में कई सारे अपराध क्षमा कर दिये जाते हैं और कुछ का हर्जाना होता, मक्का के मुश्रिकों में यह रिवाज था की वह किसी से भी विवाह कर लेते थे, जब इस पर प्रतिबंध लगाया गया तो उससे पहले कई सारे लोगों उन औरतों से विवाह कर रखा था जिसे हराम कर दिया गया था, अतः जिन लोगों ने हराम करार देने से पहले विवाह किया था उसे माफ कर दिया गया। इसीलिए आदेश हुआ की जो पहले हो चुका वह माफ,,,,,, आर्य समाजियों के मानता ओ जैसा नहीं जिसके बारे में जानकारी न हो उसे करने पर भी अपराधी माना जाये।

    1. ये तो अल्लाह कि अज्ञानता का परिणाम है
      जो नियम बदलता रहता है

      🙂

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