लाला दीवानचन्द का महत्त्वपूर्ण लेखः प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

डी.ए.वी. कालेज कानपुर के एक स्वर्गीय प्राचार्य ला. दीवानचन्द जी एक जाने माने शिक्षा शास्त्री तथा अनुभवी विचारक थे। लखनऊ से चलााष पर प्राप्त एक प्रश्न का उत्तर देते हुए इस सेवक ने प्रश्नकर्त्ता को ला. दीवानचन्द जी के कुछ वाक्य सुनाये तो उस विचारशील पाठक ने इस पर परोपकारी में कुछ विस्तार से लिखने की प्रेरणा दी। उस सुपठित युवक ने कहा, ‘‘मैंने तो कभी ला. दीवानचन्द जी का यहा कथन सुना व पढ़ा ही नहीं।’’

रोग यह है कि आर्य समाज में बड़े -बड़े नाम गिनाने व पुस्तकों की सूचियाँ बनाने को ही शोध व प्रचार माना जाने लगा है। पं. चमूपति जी, स्वामी वेदानन्द जी की पुस्तकों में लिखा क्या है? यह कौन पढ़ता व सुनता है। लखनऊ के उस युवक ने महर्षि दयानन्द जी के विषपान व कर्नल प्रतापसिंह पर एक प्रश्न पूछ लिया। उसे बताया गया कि डी.ए.वी. कालेज कमेटी के एक पूर्व प्रधान ला. दीवानचन्द जी का लबे समय तक प्रतापसिंह से सपर्क व सबन्ध रहा। मेल मिलापाी रहा। महर्षि को विष दिये जाने की घटना का वर्णन करते हुए ला. दीवानचन्द जी को यह कटु    सत्य लिखना पड़ा, ‘‘डॉ. अलीमर्दान खाँ की चिकित्सा होती रही और रोग बढ़ता गया। दिन में कई बार मूर्छा हो जाती। करवट लेने को दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ने लगी। दर्द बहुत सत था, और मुँह में और शरीर पर छाले पड़ने लगे। यह अवस्था एक सप्ताह तक जारी रही।

‘‘महाराजा प्रतापसिंह और राव राजा तेजसिंह स्वामी जी के स्थान तक न पहुँचे।’’

सत्य को छिपाने की कला के कलाकारों ने कभी डा. दीवानचन्द के इन वाक्यों को उद्धृत ही नहीं किया। प्रताप सिंह की क्रूरता पर पर्दा डालना ही कुछ लोगों का धर्म कर्म रहा है। प्रश्न आया तो हमने यह साक्षी दे दी।

ऋषि के पत्रों में लुप्त इतिहास के स्रोतः- ऋषि जीवन पर लिखने व बोलने वालों ने ऋषि जीवन में चर्चित गोरे लोगों व उस काल के अंग्रेजी पठित भारतीयों, पादरियों व मौलवियों के नाम के साथ नये-नये विशेषण गढ-गढ़ कर जोड़े और उनको महिमा मण्डित व प्रचारित करके अपनी रिसर्च की तो धौंस जमा दी परन्तु ऋषि के भक्तों, समर्पित आर्य पुरु षों, आर्य समाज की नींव के पत्थरों की उपेक्षा से स्वर्णिम इतिहास का लोप हो गया। हमारे कुछ लोगों ने ए.ओ. ह्यूम, मैक्समूलर व वोमेशचन्द्र बनर्जी की तो बड़ी रट लगाई। परन्तु ठाकुराोपाल सिंह, ठाकुर मुन्नासिंह, ठाकुर मुकन्दसिंह, भाई ज्ञानसिंह, ला. मुरलीधर, ला. लक्ष्मीनारायण, राव युधिष्ठिरसिंह और पं. गोपाल शास्त्री, पं. भानुदत्त को विसार दिया। सर सैयद के बृहत जीवन चरित्र में ‘‘श्री स्वामी दयानन्द’’ बस यही तीन शब्द मिलते हैं।

भाई ज्ञानसिंह अग्नि-परीक्षा देने वाला एक प्रमुख आर्य था। शुद्धि-आन्दोलन का पंजाब में पहला कर्णधार था। पं. लेखराम जी ने उनकी प्रशंसा की है। पत्र व्यवहार में उनकी चर्चा है। पत्र व्यवहार में वर्णित आर्यों की सूची बनानी होगी। जितना बन सकेगा, यह सेवक उन सब का इतिहास खोद-खोद कर खोज देगा।

5 thoughts on “लाला दीवानचन्द का महत्त्वपूर्ण लेखः प्रा राजेंद्र जिज्ञासु”

  1. O website owner can you please tell me is Law of attraction(what we think is what happen to us…etc.)(please searh on google to know more about this) works.there is movie documentry movie named The secret has been launched on this and there is many books have been written on this by famous authors like william walker akinthison and there is even a ASHRAM opened by a man named Srisri in india and mrs.Shivani of bhramakumaries.so just tell me is it works.the law tells that what is/has happened to you is
    Due to what you have thought.SO PLEASE REPLY….JUST yes or no…

    1. Not srisri but sirshree.and indeed your above essay is nice.just continue………………..but please reply above comment. it may take time for you to understand that law but plese know it and tell is it works.

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