दयानन्द और वेद के लिये, जीने मरने वाला।
हमने खो दिया लेखराम के पथ पर चलने वाला।।
देश-विदेश का कोना इनके लिये http://aryamantavya.in/wp-admin/post-new.phpमुहुर्मुह छाना,
वे गृहस्थ में संन्यासी थे, सबने इनको माना।
कौन है उनके जैसा तप और त्याग को करने वाला,
हमने खो दिया लेखराम……………….।।
अद्भुत था अधिकार वेद, उपनिषद और दर्शन पर,
मुख खुलता तो शब्द सुमन से, झरते थे सुन्दर तर।
उनके जैसा मिला न कोई सत् पर अड़ने वाला।
हमने खो दिया लेखराम……………….।।
सभी जगह श्री धर्मवीर ने पहुँचा दी परोपकारी,
आर्य जगत् की एकमात्र पत्रिका बन गई हमारी।
होता था सम्पादकीय उनका सबसे ही आला।
हमने खो दिया लेखराम……………….।।
ऋषि उद्यान को तीर्थधाम में करना है परिवर्तित,
आज हम सभी को मिलकर के करना यही सुनिश्चित्।
दूर हो गया रेखाचित्र में रंग का भरने वाला।
हमने खो दिया लेखराम……………….।।
वाणी, कलम, कर्म तीनों से साथ हो उनकी पूरी,
उनके किसी भवन की हो दीवार न कोई अधूरी।
उसके किसी प्रकल्प का दीपक नहीं हो बुझने वाला।
हमने खो दिया लेखराम……………….।।
सदा सरलता और सादगी उनके जैसी धारें,
देश, जाति और धर्म के लिये उन समान बन वारें।
होती रहे अतिथि-सेवा बन्द न हो गोशाला।
हमने खो दिया लेखराम……………….।।