ख़ारिज
अली ने यमन से मुहम्मद को कुछ मिट्टी-मिला सोना भेजा। उसके बंटवारे में मुहम्मद ने पक्षपात किया। जब कुछ लोगों ने शिकायत की, तो मुहम्मद ने कहा-”क्या तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, जबकि मैं उसका विश्वासपात्र हूं, जो जन्नत में है ? जन्नत से सुबहो-शाम मुझ तक खबरें आती रहती हैं।“ यह सुनकर लोग चुप हो गये। पर उनमें से एक व्यक्ति, जिसकी आंखें गहरी धंसी थीं, जिसके मालों की हड्डियां उभरी हुई थीं, जिसकी दाढ़ी घनी थी और सिर मुंडा हुआ था, खड़ा हो गया और बोला-”अल्लाह के रसूल! अल्लाह से डरो और इन्साफ करो।“ इससे मुहम्मद क्रुद्ध हो गये और जवाब दिया-”लानत है तुम पर ! अगर मैं इन्साफ नहीं करता तो और कौन इन्साफ करेगा ?“ उमर वहां मौजूद थे। वे मुहम्मद से बोले-”अल्लाह के रसूल ! इस मक्कार को मार डालने की मुझे इजाजत दें।“ यद्यपि वह शख्स बख्श दिया गया, पर वह और उसकी परवर्ती पीढ़ियां भत्र्सना का विषय बन गई। मुहम्मद ने कहा-”इसी शख़्स की औलाद में से वे लोग निकलेंगे, जो कुरान का पाठ करेंगे, पर वह उनके गले के नीचे नहीं उतरेगी। वे इस्लाम के अनुयायियों का वध करेंगे पर बुत-परस्तों को छोड़ देंगे। ….. यदि वे मुझे मिलें, तो मैं उन्हें आद की तरह मार डालूं (आद वह कबीला था जिसे जड़मूल से नष्ट कर गया था)“ (2316-2327)।
ये लोग चलकर खारिज कहलाये। इस्लाम के कुछेक नारों को वे हृदयंगम कर बैठे थे। अली के अनुसार, उनके बारे में ही मुहम्मद ने कहा था-”जब उनसे मिलो, तो उन्हें मार डालो। क्योंकि उनको मार डालने के लिए फैसले के रोज अल्लाह तुम्हें इनाम देगा“ (2328)। ये आरम्भिक इस्लाम के अराजकतावादी एवं कट्टरता-वादी लोग थे। उनके बारे में आदेश था-”वे जब हार जायें तो उनका पीछा करना और उनमें से कैद किए लोगों को मार डालना और उनकी सम्पत्ति को नष्ट कर देना।“
author : ram swarup