क़र्जे
मुहम्मद मृतक के कर्जों के मामले में बहुत सतर्क थे। मृत व्यक्ति की संपत्ति में से उसके अंतिम संस्कारों के खर्च निकालने के बाद उसके कर्जों की अदायगी सबसे पहले की जाती थी। अगर उसकी संपत्ति कर्जों की अदायगी के लिए काफ़ी न हो तो चंदे से पैसा जुटाया जाता था। किन्तु लड़ाइयां जीतने के बाद मुहम्मद जब धनी हो गये तो कर्ज़ वे अपने पास से चुकता कर देते थे। उन्होंने कहा-”जब अल्लाह ने जीत के दरवाजे मेरे लिए खोल दिये तो उसने कहा कि मैं मोमिनों के अधिक नज़दीक हूं, इसलिए अगर कोई क़र्ज़ छोड़कर मर जाता है तो उसकी अदायगी मेरी ज़िम्मेदारी है और अगर कोई जायदाद छोड़ कर मरे तो वह उसके वारिसों को मिलेगी“ (3944)।
author : ram swarup