जुमे की नमाज़
जुमे का दिन एक खास दिन है। ”उस दिन आदम को रचा गया था। उस दिन उसे जन्नत में प्रवेश मिला था। उस दिन ही वह जन्नत से निष्कासित किया गया था“ (1856)।
मुसलमानों से पहले हरेक मिल्लत को किताब दी गई थी। परन्तु मुसलमान यद्यपि ”आखिरी हैं“ तथापि वे “कयामत के रोज अव्वल होंगे।“ जहां यहूदी और ईसाई क्रमशः शनिवार और रविवार को अपना दिन मनाते हैं, वहीं मुसलमान भाग्यशाली हैं कि वे खुद अल्लाह द्वारा उनके लिए नियत शुक्रवार को अपना दिन मनाते हैं। ”हमें शुक्रवार का निर्देश बहुत ठीक दिया गया, किन्तु हमसे पहले वालों को अल्लाह ने दूसरी राह दिखा दी“ (1863)।
इस सिलसिले में एक दिलचस्प कहानी कही जाती है। एक जुमें को, जब पैगम्बर अपना उपदेश दे रहे थे, सीरिया के सौदागरों का एक काफिला आया। लोगों ने पैगम्बर को छोड़ दिया और वे काफिले की तरफ भागे। तब यह आयत उतरी-”और जब वे लोग सौदा बिकता या तमाशा होता देखते हैं, तो उधर भाग जाते हैं और तुम्हें खड़ा छोड़ जाते हैं“ (1887; कुरान 62/11)।
author : ram swarup