इस्लाम से पूर्व के अरब लोग
मुस्लिम मीमांसक और लेखक इस्लाम-पूर्व अरब-देश का एक गहन अंधकार मय चित्र प्रस्तुत करने के आदी हैं। वे उसे नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट तथा उदारता एवं विशाल-हृदयता से सर्वथा वंचित बतलाते हैं तथा इतिहास के उस कालखंड को ”जाहिलीय्या“ अर्थात ”अज्ञान एवं बर्बरता की दशा“ कहते रहते हैं। उनके अनुसार, प्रत्येक अच्छी बात मुहम्मद के साथ शुरू हुई। परन्तु ऐसी कई हदीस हैं, जो इसके विपरीत स्थिति ही सिद्ध करती हैं। हमें बतलाया जाता है कि हकीम बिन हिज़ाम ने ”अज्ञान की दशा में ही …………….. धार्मिक शुद्धता वाले अनेक कार्य किये“ (222)। एक अन्य हदीस से हमें विदित होता है कि उन्होंने इसी दशा में एक-सौ गुलामों को ”मुक्त किया तथा एक सौ ऊँट दान में दिए“ (225)।
सामान्यतः ऐसे सत्कार्यों का पुण्य किसी बहुदेववादी व्यक्ति को नहीं मिलता। पर अगर वह इस्लम अपना लेता है, तब बात ही और हो जाती है। तब उसके कार्यों का सम्पूर्ण स्वरूप बदल जाता है। तब वे व्यर्थ नहीं जाते। वे सुफलदायक हो उठते हैं। उस व्यक्ति को उनका श्रेय मिलता है। मुहम्मद हकीम को भरोसा दिलाते हैं-”तुमने इस्लाम को अपनाया है। पहले के किये गये सभी सत्कार्य तुम्हारे साथ रहेंगे” (223)।
लेखक : रामस्वरुप